🔹 तीन बेटों ने छोड़ा साथ, राशन के लिए दर-दर भटकी मां
🔹 डीएम सविन बंसल के दरबार में पहुंची गुहार, कुछ घंटों में बहाल हुआ राशन कार्ड
🔹 “बुजुर्गों और असहायों के तिरस्कार की अब नहीं बख्शी जाएगी लापरवाही” – डीएम
📰 ओपनिंग
जब सिस्टम सो रहा था, तब एक मां जाग रही थी…
72 वर्षीय सरस्वती देवी अपनी लाठी पकड़े, डगमगाते कदमों से कलेक्ट्रेट पहुंचीं—सीधे जिलाधिकारी के सामने। तीन-तीन शादीशुदा बेटों के होते हुए भी वृद्धा के घर में दो वक्त की रोटी नहीं थी… वजह? पूर्ति विभाग की बेरुखी।

✍️ मुख्य खबर
तीन बेटे, तीन घर… पर मां बेसहारा।
सरस्वती देवी ने बताया कि उनका अंतिम सहारा – छोटा बेटा भी अपने परिवार के साथ अलग हो गया। अब वो अकेली हैं, जीवन यापन के लिए विधवा पेंशन के सहारे।
“राशन डीलर कहता है – लिस्ट में नाम नहीं है!”
सरस्वती का दर्द तब छलका जब उन्होंने डीएम को बताया कि पहले उन्हें राशन मिलता था, लेकिन अब उन्हें सूखी थाली नसीब हो रही है।
तुरंत एक्शन में आए डीएम सविन बंसल
जैसे ही मामला डीएम तक पहुंचा, उन्होंने पूर्ति अधिकारी को तलब किया। आदेश हुआ – “तुरंत नाम बहाल करो, और आज ही राशन दो!”
“कलेक्टरेट की कलम चलने से पहले दौड़ पड़ा सिस्टम!”
सिर्फ कुछ घंटों में राशन कार्ड बहाल हुआ। बुजुर्ग मां को उसी दिन उनका अनाज भी दे दिया गया।
📣 भावनात्मक अपील और बयान:
“क्या सिर्फ इसलिए मां भूखी रहे कि उसके बेटे अब उसके साथ नहीं?”
इस सवाल ने पूरे कलेक्टरेट को झकझोर दिया।
डीएम का सख्त संदेश:
“बुजुर्गों, महिलाओं, बच्चों और असहायों के साथ कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। दोषी बख्शे नहीं जाएंगे।”
🙏 क्लोजिंग लाइन:
जब बेटे मुंह मोड़ लें, तो प्रशासन को माता-पिता बनना पड़ता है।
सरस्वती की कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं है—यह उस सिस्टम की कसौटी है जो हर उपेक्षित नागरिक की उम्मीद बन सकता है… अगर चाह ले तो।
