🔥 “रा.इ.का. कण्डारी में गढ़ भोज की महक…
🌄 नौगांव (उत्तरकाशी) से खुशबू भरी खबर…
राजकीय इंटर कॉलेज कण्डारी आज सचमुच महक उठा! कक्षा 9 और 10 की छात्राओं ने ऐसा गढ़ भोज सजाया कि पूरा परिसर पहाड़ की यादों, रंगों और स्वाद से भर गया। तिल-भट-पुदीना की चटनी, पीले कद्दू का रायता और भरी हुई पहाड़ी पूरियों की खुशबू दूर तक फैलती रही… और हर कोई यही कहता नजर आया—
“ये सिर्फ भोज नहीं… संस्कृति की वापसी है।”
🍲 पारंपरिक स्वाद, सिलबट्टे की खनक और पहाड़ की थाली
छात्राओं ने घर की याद दिलाने वाले व्यंजन तैयार किए—
- आलू की भरी पूरियां
- तिल–भट–पुदीना–धनिया–लहसुन की देसी चटनी
- मूली की तीखी खुशबू वाली चटनी
- पीले कद्दू का रायता
- और पहाड़ की मशहूर मसाले वाली चा
सिलबट्टे की आवाज, देसी मसालों की खुशबू और पहाड़ी व्यंजनों की गरमाहट… कार्यक्रम को एक अनोखी आत्मीयता दे रहे थे।
👧 स्थानीय वेशभूषा में मासूम… कार्यक्रम की शान बनीं!
स्थानीय आभूषणों से सजी छात्रा मासूम नौटियाल ने सबका ध्यान खींच लिया। उनकी पारंपरिक पोशाक ने गढ़ संस्कृति की असली झलक पेश की। हर निगाह बस उन पर ही टिक गई!
🎙️ “विरासत को जियो… सिर्फ पढ़ो मत!” – प्रधानाचार्य नरेश रावत
प्रधानाचार्य ने छात्राओं द्वारा बनाए गए व्यंजनों की तारीफ करते हुए कहा—
“ये स्वाद सिर्फ पेट नहीं भरता, पहचान भी जीवित रखता है।”
उन्होंने पूरे आयोजन को सार्थक और प्रेरणादायी बताया।
🌾 “पहाड़ का मोटा अनाज… भविष्य की ताकत!” – शिक्षक सुरक्षा रावत
जाड़ी संस्था का आभार जताते हुए सुरक्षा रावत ने बच्चों से कहा—
“हमारा पोषण हमारी मिट्टी में है। हमें अपनी पहचान और विरासत को कायम रखना होगा।”
🥘 “वोकल फॉर लोकल… और आत्मनिर्भर भारत की डगर” – शिक्षिका दीपिका जैन
उन्होंने स्थानीय पकवानों की उपयोगिता पर जोर देते हुए कहा—
“जब हम अपने उत्पाद अपनाएंगे, तभी आत्मनिर्भर भारत की नींव मजबूत होगी।”
🙌 छात्राओं की टीम… जिनके बिना गढ़ भोज अधूरा!
खुशी, पूजा, कनिका, आरुषि, स्वाति, राधिका, वंशिका, ऋषिका, साक्षी, सोनाक्षी, मोनिका, मुस्कान, आयुषी, प्रतीक्षा, मानवी, नव्या, प्रियांशी, अनीशा, रिया, सिमरन, श्वेता, स्मृति…
सभी ने मिलकर इस कार्यक्रम को यादगार बना दिया।
पूरा विद्यालय परिवार इस अनोखे गढ़ भोज का स्वाद लेते हुए खुश नजर आया।
🌟 अंत में…
आज कण्डारी इंटर कॉलेज ने सिर्फ व्यंजन नहीं परोसे—
उन्होंने भविष्य की पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का अहसास परोसा।
और ये याद दिलाया कि—
“परंपरा कभी पुरानी नहीं होती… बस दोबारा जीने का इंतज़ार करती है।”
