पालिका की तरफ दौड़ -खतरे में सदस्यता:#मेरुरैबार

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जिला पंचायत से नगर पालिका की तरफ बढ़ते कदम।

पालिका में दिखने लगा स्वर्णिम भविष्य।
जिला पंचायत की गुटबाजी से ठप्प विकास।
सददयता पर बरकरार खतरा

गिरीश गैरोला

उत्तरकाशी में जिला पंचायत जैसे बड़ी संस्था से उतर कर नगर पालिका की  तरफ बढ़ता सदस्यों का  रुझान आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है। खुद जिला पंचायत अध्यक्ष जसोदा राणा नगर पालिका बडकोट से चुनाव लड़ने के लिए शतरंज की गोटिया बिछा चुकी है, वही जिला पंचायत संगठन के अध्यक्ष कुलदीप बिष्ट ने भी  उत्तरकाशी बड़ाहाट से सबसे पहले नामांकन करवा कर अपनी दावेदारी पेश कर दी है।
हालांकि पार्टी की तरफ से पैनल में उनका नाम भी होना बताया गया इसके बाद भी पार्टी के अधिकृत प्रत्यासी के खिलाफ बागी होकर लड़ने के पीछे भी कोई नई गणित बतायी जा रही है।
जिला पंचायत अध्यक्ष जसोदा राणा की पालिका दावेदारी को लेकर सोसल मीडिया पर खूब चर्चा रही कि वे इस्तीफा देंगी या नही? उनकी सदस्यता और अध्यक्ष पद बना रहेगा या नही? उनके बाद अध्यक्ष पद का दावेदार कौन होगा ? आदि, किन्तु जिला पंचायत की तरफ से सबसे पहले पालिका उत्तरकाशी में अध्यक्ष पद के लिए नामांकन  करवाने वाले सदस्य कुलदीप बिष्ट को लेकर सोसल मीडिया में सन्नाटा छाया रहा,
गौरतलब है कि नगर पालिका और जिला पंचायत का इलाका नगरीय और ग्रामीण होने के चलते अलग -अलग है। एक व्यक्ति का दो स्थानों पर वोटर लिस्ट में नाम दर्ज होना गैरकानूनी है और इसमें सजा का भी प्रविधान है। अब कुलदीप बिष्ट ग्रामीण इलाके से अपना नाम वोटर लिष्ट में दिखाते है तो नगर पालिका में चुनाव नही लड़ सकते और यदि नगर में दिखाते है तो उनकी जिला पंचायत से सदस्य्ता खतरे में पड़ सकती है। हालांकि दूरभाष पर कुलदीप बिष्ट ने बताया कि उन्होंने सोच समझ कर नामांकन किया है और उनकी सदस्य्ता को लेकर फिलहाल कोई खतरा नही है।
वही जानकारों की माने तो जसोदा राणा का नाम ग्रामीण क्षेत्र से हटने के बाद उनकी जिला पंचायत सदस्य्ता तो खतरे में पड़ जाएगी किन्तु बतौर अध्यक्ष उनकी कुर्सी पर अंतिम फैसले का अधिकार शासन को दिया गया है। उत्ततारखण्ड पंचायती राज अधिनियम 2016 के बिंदु 88, 89 और 90 में इसका जिक्र किया गया है।
वही पालिका चुनाव जीतने की दशा में उनके स्थान पर अरक्षित सीट होने के चलते सदन में मौजूद सदस्यों में से किसी महिला सदस्य को अध्यक्ष पद पर चुनाव के बाद निर्वाचित किया जा सकता है।
शनिवार को जसोदा राणा का नाम ग्रामीण क्षेत्र से हटने की पुष्टि जिला निर्वाचन अधिकारी ने कर दी जिसके बाद एडीएम की रिपोर्ट पर शहरी क्षेत्र में उनका नाम जोड़ने के लिए आयोग को लिखा जाएगा। इस प्रक्रिया में जिला निर्वाचन अधिकारी का काम अपनी आख्या के साथ रिपोर्ट को आयोग को भेजने तक ही सीमित बताया जा रहा है।
साथ ही चुनाव आयोग का काम भी शांति पूर्वक नियमानुसार  चुनाव सम्पन्न कराने तक ही सीमित है। इस दौरान किसकी सदस्य्ता रहेगी या समाप्त होगी इसका अपील अधिकार शासन के पास सुरक्षित रखा गया है।
अधिनियम के बिंदु 194 में साफ लिखा गया है    कि पंचायती राज अधियनितम 2016 के अतिरिक्त अन्य कोई भी नियम कानून इस पर प्रभावी नही  माना जाएगा
जिला पंचायत की बड़ी कुर्सी को छोड़ कर पालिका की  तरफ रुझान पर जसोदा राणा ने बताया कि वे पूर्व में बडकोट नगर पंचायत में अध्यक्ष रही है और बडकोट की जनता उन्हें बार बार वहा चुनाव लड़कर विकास में योगदान करने  की अपील कर चुकी है।
गौरतलब है कि जसोदा यमुनोत्री में भविष्य के विधान सभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने चाहती है किंतु जिला पंचायत में सदस्यों की गुटबाजी ने उन्हें समय से पहले ही अपनी पारी समेटने को मजबूर कर दिया है। इधर इस कदम के बाद बदले सियासी समीकरणों के बीच कई नए समीकरण भी उभर कर सामने आने लगे है। कई दुश्मन दोस्त तो कुछ दोस्त दुश्मन बन गए है।
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