कोदा झंगोरा खाएँगे उत्तराखंड राज्य बनाएँगे – इस नारे के साथ उत्तरर प्रदेश से पृथक राज्य की मांग को लेकर सदको पर उतरे थे लोग किसी के कहने पर नहीं – स्व स्फूर्त –
राज्य मिल गया फिर क्या हुआ – क्या हुआ उन सपनों का – कहा चूक हो गयी – कहते है – विकास सतत प्रक्रिया है – कोई जादू की छड़ी नहीं है कि घुमाओ और विकास हो गया _ अगर विकास सतत प्रक्रिया है तो चुनी हुई सरकारो का क्या योग दान है | आज हर किसी को अपने आप से प्रश्न पूछने कि जरूरत है कि प्रदेश के लिए आपका अपने स्तर पर क्या योगदान है, भले ही छोटा योगदान हो – उस गिलहरी कि तरह जो लंका पर पुल निर्माण मे श्री राम की मदद के लिए आगे आयी थी – सवाल पूछना आसान है | सुरुवात कही से भी हो सकती है – आप खड़े तो होइए – आपके पीछे लोग जुडते चले जाएंगे – हमारे पास योग्य नेताओ कि जरुर कमी हो सकती है उनका समर्थन करने वालों की तो कोई कमी नहीं |
गिरीश गैरोला
आप डीएम उत्तरकाशी आईएएस मयूर दीक्षित को ही देख लीजिए – राज्य स्थापना दिवस पर सभी अतिथियों के बीच अधिकारियों के साथ बैठे है- टेबल पर काजू बादाम और कई प्रकार की मिठाई रखी है| जी हाँ ये उसी प्रदेश का स्थापना दिवस है जिसके लिए कोदा झंगोरा खकार भी राज्य निर्माण कि कसम खाई थीं – इतनी कुर्बानी के बाद मिले राज्य के स्थापना दिवस पर राज्य आंदोलन करियों के सामने टेबल पर मुख्य अतिथि विधायक सांसद और उनके साथ आए पार्टी के नेताओ के सामने ड्राइ फ्रूट और अन्य लोगो को चाय की प्याली मे टरका देंगे ? पर क्या करे पहले से रीति चली आ रही है| चपरासी भी क्या करे – कितना भी बड़ा कार्यक्रम हो, मंच पर खाने पीने का प्रोटोकॉल पूरा होना बेहद जरूरी है |
आगे सुनिए जो इस बार खास हुआ – जैसे ही चपरासी काजू बादाम की प्लेट लेकर डीएम मयूर दीक्षित के पास पहुचा उन्होने इशारे से इंकार किया चपरासी थोड़ा ठिठका फिर तकल्लुफ़ छोड़ आगे बढ़ने लगा तो डीएम ने हल्की सी झिड़की लगा दी – बोला न यहा मत रखो – और उन आंदोलन करियों कि तरफ इशारा करते हुए कहा, “ उन्हे खिलाओ” – जो आज के मेहमान है |
ठीक तो कहा – कम से कम एक दिन तो उन्हे इज्जत दो जिन्हे हम बहुत ही कमतर करके आँकते है |
डीएम इतना ही कर सकते है अपनी टेबल पर ड्राय फ्रूट लेने से इंकार कर सकते है पर – मुख्य अतिथियों को तो नहीं कह सकते न , आखिर अतिथि तो भगवान होता है| ये अलग बात है कि आज के इन अतिथियों के आने का समय और दिन पहले से ही निर्धारित था, तो फिर कौन थे अतिथि और ये कैसे अतिथि और कैसे भगवान ? मुझे लगता है कि कोदा झंगोरा खाकर राज्य लेने के नारे के पीछे सिर्फ कुर्बानी मकसद रहा होगा | ये तो कतई नहीं कि सार्वजनिक समारोह मे टेबल पर उन आन्दोलंकारियों के बीच जिनके लिए आज का दिन खास है, आप कुछ खास लोगो को काजू बादाम खिलाओ – सायद इस परंपरा को तोड़ने कि जो पहल आईएएस और डीएम उत्तरकाशी मयूर दीक्षित ने सुरू कर दी है उसका समर्थन तो कर ही सकते है |