उत्तरकाशी : करोड़ो खर्च कर वन विभाग हारा – नेताजी की किचन गार्डन मे मुस्करा रही वही द्रोपदी माला

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उत्तरकाशी – वन  विभाग और वैज्ञानिक करोड़ो खर्च  करके लंबे अनुभव और अनुसंधान के बाद  जिस द्रोपदी माला के पुष्प को खिलाने का दावा कर रहे है उसे नेताजी लोकेन्द्र बिष्ट के किचन गार्डन मे खिल खिलाते हुए देखा जा सकता है ।

द्रौपदी माला जिसे फ़ॉक्स टेल आर्चिड भी कहॉ जाता है यह भारत के असम प्रान्त का राजकिय पुष्प भी है। इसे  महाराष्ट्र  मे गजरा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि द्रोपदी के गजरे पर सजने वाला ये पुष्प रामायण की मां सीता को भी बेहद प्रिय था। इसी धार्मिक महत्व को देखते हुए उत्तराखंड का  वन महकमा इसे

 सहेजने मे करोड़ो का बजट लगाकर सफलता के दावे कर रहा है, वही उत्तरकाशी के सामाजिक कार्यकर्ता और बीजेपी के नेता लोकेन्द्र बिष्ट ने अपने किचन गार्डन मे ही इसे तैयार कर लिया है । लोकेन्द्र ने बताया कि उनके गाँव मे अखरोट के सड़े किन्तु खड़े पेड़ पर परजीवी के रूप मे ये पुष्प खिल रहा था वहाँ से इसे लाकर अपने किचन गार्डन मे उगाने का उनका  प्रयास सफल हुआ है । उत्तराखंड मे इस   पुष्प को वन अनुसंधान केंद्र ने हल्द्वानी स्थित एफटीआइ की नर्सरी में खिलाकर इसे संरक्षित करने का दावा किया गया है ।

 

धार्मिक, औषधीय व सांस्कृतिक विरासत से जुड़े द्रोपदीमाला पुष्प की सुगंध से अब  देवभूमि भी महकेगी। असम व अरुणाचल है राज्य पुष्प

द्रोपदीमाला नामक यह फूल असम व अरुणाचल प्रदेश का राज्य पुष्प है। मेडिकल गुणों की वजह से इसकी खासी डिमांड है। आंध्र प्रदेश में इसकी तस्करी भी होती है। फॉरेस्ट के मुताबिक महाभारत की अहम पात्र द्रोपदी माला के तौर पर इन फूलों को इस्तेमाल करती थीं। जिस वजह से इसे द्रोपदी माला कहा जाता है। वनवास के दौरान सीता मां से भी इसके जुड़ाव का वर्णन है। यहीं वजह है कि महाराष्ट्र में इसे सीतावेणी नाम से पुकारा जाता है।

वन विभाग दुर्लभ व औषधीय वनस्पतियों को सहेजने के साथ उन प्रजातियों पर भी काम कर रहा है। जिनका धार्मिक महत्व है। इस कड़ी में द्रोपदीमाला पुष्प को वन अनुसंधान केंद्र द्वारा ज्योलीकोट व एफटीआइ की नर्सरी में प्रयोग के तौर पिछले साल नवंबर में लगाया गया है , ऐसे मे उत्तरकाशी गंगा भागीरथी के किनारे अपने निजी प्रयासो से घर के बाहर छोटे से गार्डन मे इस पुष्प को खिलाने को लेकर लोकेन्द्र बिष्ट अति उत्साहित है । चलिये लोकेन्द्र बिष्ट से ही जानते है उनकी प्रयासो कि कहानी –

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