ढूंढते रह जाओगे इनका नाम विभाग की लिस्ट में

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जानकारी देने वालो पर कानून की सख्ती,
छुपाने वालो पर मेहबानी?।
शिकायत मिलने पर कार्यवाही का रटा रटाया जबाब।
गिरीश गैरोला
उत्तराखंड पर्यटन विभाग का अब तक पर्यटकों की पूरी जानकारी देने वालो को कड़े कानून की सख्ती और वर्षो से लुका छिपी का मिला जुला खेल खेलने वालों पर मेहरबानी वाला रुख सवालो के घेरे में है। दरअसल होटल के अलावा अन्य पर्यटक गतिबिधियों में जुड़े संस्थानों और उससे लाभान्वित हो रहे पर्यटकों के आंकड़े को लेकर जो ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली अपनायी जा रही है उसमें अभी भी लुका छिपी का खेल चल रहा है। जनपद में बिना पंजीकरण के अपने फार्म हाउस को होटल के रूप में उपयोग करने वालो पर विभाग की नजरें इनायत है। पूर्व में होटल एसोसिएशन की शिकायत के बाद भी ऐसे संस्थानों का विभाग के रजिस्टर में भले ही पंजीकरण नही हो सका किन्तु रास्ट्रीय राजमार्ग पर लगे इन फार्म हाउस के साइन बोर्ड में पर्यटकों को रूम्स पार्किंग और अन्य सुविधाओं का पूरा विवरण दिया गया है। दरअसल कानून का डर तो पालन करने वाले को होता है जो अभी लिस्ट  में जुड़ा ही नही उसे किस बात का  खौफ? अब पर्यटन विभाग की पंजीकरण लिस्ट में जुड़ने के बाद उसे जल संस्थान और बिजली विभाग से भी कॉमर्शियल कनेक्शन लेने होंगे इससे बेहतर तो मिल जुल कर अपनी गाड़ी आगे बढ़ने वाले लोग ही कानून का पालन करने वालो को मुंह चिढ़ा रहे है।

वर्षो से नियमो का पालन करने वालो पर कड़े कानून।

उत्तरखंड में नियमानुसार कानून का पालन करने वालो के लिए नित नए और कड़े कानून तैयार किये जा रहे है किंतु वर्षो से कानून को ताक पर रखकर चलने वाले मौज उड़ा रहे है।
ताजा मामला उत्तराखंड उत्तरखंड पर्यटन व्यवसाय नियमावली 2014 संसोधन 2016 में पंजीकरण को लेकर है। जिला पर्यटन अधिकारी प्रकाश खत्री ने बताया कि विभाग की मनसा है कि पर्यटन व्यवसाय से जुड़ी हर एक्टिबिटी को ऑनलाइन पंजीकरण से जोड़ा जाय ताकि ये स्पष्ट हो सके कि किस जनपद में कितने पर्यटक किस एक्टिबिटी से इंटरटेन हो रहे है
 पर्यटकों की वास्तविक संख्या से योजनाओ ने निर्माण में डेटा सरकार के काम आ सकता है। इसलिए इस बार होटल के साथ आश्रम,  धर्मशाला, पर्वतारोहण रेस्टोरेंट आदि अन्य यूनिट को भी ऑनलाइन पंजीकरण के लिए कड़े कानून के दायरे में लाया जा रहा है। दरअसल यात्रा के दौरान बड़ी तादाद में यात्री आश्रमो में निवास करते है जिनका कोई भी आंकड़ा विभाग तक नही पहुँच पता है। इसके अलावा शीतकाल में जब चार धाम यात्रा लगभग बंद होती है उस वक्त भी ट्रैक और टूर अथवा पर्वतारोहण से कितने पर्यटक जिले में पहुँच रहे है इसका सटीक आंकड़ा विभाग तक पहुँच सकेगा।
हालांकि होटल व्यवसाइयों के लिए पूर्व में सराय एक्ट से पर्याप्त जानकारी मिल रही थी किन्तु ऑनलाइन पंजीकरण में उन्हें जमीन के स्वामित्व के साथ निर्माण के नक्शे की प्रति भी जमा करनी है इतना ही नही 20 से अधिक कमरों वाले होटल स्वामी को पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र भी देना है जिसमे 20 अधिक टॉयलेट शीट होने पर होटल स्वामी को खुद का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट निर्माण के बाद ही एनओसी जारी हो सकती है।
गौर करने वाली बात तो ये है कि संविधान पर विस्वास करने वाले ज्यादातर व्यवसायी नियमो का पालन कर रहे है जो होटल स्वामी पूर्व में सराय एक्ट से जुड़े थे वे कुछ अन्य दस्तावेज के साथ ऑनलाइन पंजीकरण के लिए आगे आ रहे है किंतु इस धंदे की कुछ बड़ी मछलियां वर्षो से अपने फार्म हाउस को होटल की तरह इस्तेमाल कर रही है जिन्होंने न तो इन्होंने सराय एक्ट में  पंजीकरण  किया और न अब ऑनलाइन पंजीकरण ।
गंगोत्री रास्ट्रीय राजमार्ग पर सड़क किनारे लगे साइन बोर्ड बताते है कि  इस भवन में रूम उपलब्ध है वो भी पार्किंग के साथ बाकायदा मोब न भी संपर्क के लिए दर्शाया  गया है अब सवाल ये है कि होटल एसोसिएशन की शिकायत के बाद भी इनपर क्यों कार्यवाही नही हो सकी क्यों इन्होंने सराय एक्ट में पंजीकरण नही कराया। शिकायत मिलने पर कार्यवाही करने की पर्यटन विभाग की दलील यहाँ कतई हजम नही होती।
पूरी रिपोर्ट देखिए लिंक में।
https://youtu.be/Thnvojdr264

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विभाग की माने तो उक्त स्थल पर नोटिस लेने वाले कोई व्यक्ति नही मिले जबकि सड़क पर लगे साइन बोर्ड पर अंकित मोबाइल न से आप कमरा बुक कर सकते है बस पंजीकरण कराने की टालमटोल के सिवा कुछ नही है।
अगर कानून की बात करे तो जानकारी छुपाने और पंजीकरण नही करने पर पहला जुर्माना 10 हजार रु का है और फिर प्रतिदिन एक हजार की दर से पर आजतक इस कानून से इसके पालन करने वाले जरूर परेसान दिखे किन्तु वो बिल्कुल नही।

https://youtu.be/Thnvojdr264

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