जिले कि घोषणा के बाद फुट डाल गयी सरकार:मेरु रैबार

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आरपी विशाल , फ़ोटो कैलाश रॉवत पुरोला

नीति में घोषणाओं का कोई महत्व नही होता है और न ही जिम्मेदारी तय होती है। 15 अगस्त 2011 को तात्कालिक बीजेपी सरकार ने उत्तरखण्ड में चार नये जिलों के गठन की घोषणा की। हालांकि पुरोला को जिला बनाये जाने की मांग 2008 से शुरू हो चुकी थी लेकिन इस घोषणा के बाद लोगों में एक बड़ा उत्साह हुआ कि इन जिलों के बनने से आम जनमानस से जुड़े काम शीघ्र अतिशीघ्र होंगे। लेकिन इसी उम्मीद के साथ अपवाद ने भी जन्म ले लिया। उत्तरकाशी से यमुनोत्री को पृथक जिला बनाने की घोषणा ने वहां के स्थानीय लोगों को ही आपस में भिड़ा दिया क्योंकि यमुनोत्री क्षेत्र के लोग एक ओर है एवं रवाईं, मोरी, बंगान क्षेत्र के लोग जिला मुख्यालय को लेकर दूसरी ओर।

जिले की यह घोषणा ही पूर्णतः एक राजनितिक षड्यंत्र था अथवा लाभ के दृष्टिकोण की उद्घोषणा मात्र थी अन्यथा 7 वर्ष बीत जाने के बाद भी और बीजेपी की सरकार के समय हुई घोषणा के बाद बीजेपी का सत्ता से बेदखल हो जाना फिर कांग्रेस का 5 साल सत्ता में रहना, फिर कांग्रेस का भी सत्ता से बेदखल होना और वापस बीजेपी का आना इतने सालों में जिलों को लेकर किसी भी सरकार ने एक कदम भी आगे न बढ़ना यह दर्शाता है कि जनता को आपस् में उलझाकर तमाम दल एवं नेता सत्ता सुख भोगना चाहते हैं।

विगत कई दिनों से रवाईं क्षेत्र के लोग पुरोला में जिला मुख्यालय बनाने की मांग को लेकर पुरोला तहसील परिसर पर धरना प्रदर्शन कर रहे थे। आंदोलन से जुड़े लोगों और संगठनों का कथन है कि पुरोला से लेकर मोरी तहसील के अंतिम गांव तक बहुत पिछड़ा एवं संसाधनों से जूझता हुआ क्षेत्र है। जबकि यमुनोत्री क्षेत्र पर्यटन के क्षेत्र से काफी विकसित है इस लिहाज से यदि मुख्यालय पुरोला में बनता है तो इसका लाभ उस आखिरी गरीब व्यक्ति को अवश्य होगा। यमुनोत्री एक विश्व धरोहर है, भौगोलिक दृष्टि से देखा जाय तो संवेदनशील भी है और हमेशा जाम की स्थिति से भी जूझता है ऐसे में मुख्यालय भी उसी क्षेत्र में बनता है तो स्थानीय लोगों के लिए परेशानी ही होगी जबकि मोरी, बंगान क्षेत्र के लोगों के लिए उत्तरकाशी एवं बड़कोट में ज्यादा फर्क नही होगा।

मोरी के पर्वतीय क्षेत्र से कोई व्यक्ति जब जिले में काम करने के उद्देश्य से जाता है चाहे वह उत्तरकाशी हो या बड़कोट उसके तीन दिन व्यर्थ हो जाते हैं, चार धाम पर्यटन स्थान होने के चलते होटल के खर्चे से लेकर खाना पीना तक सबकुछ महंगा है इसलिए कोई भी काम करवाने के लिए उसे सौ बार सोचना पड़ता है। सत्ता के विकेंद्रीकरण की वास्तविक परिभाषा वही है यदि लोकतंन्त्रिक व्यव्यस्था में बैठा आखिरी व्यक्ति को अपनी आवश्यकता के समय बिना किसी उलझन एवं अड़चन के उसका कार्य पारदर्शी तरीके से हो इसलिए जनता को भी यह समझना आवश्यक है कि सत्ता का विकेंद्रीकरण यदि होता है तो उसकी अधिक आवश्यकता कहाँ हो सकती है। इसे किसी की हार जीत का मुददा न बनाये।

जिले मुख्यालय की मांग को लेकर स्थानीय नेता एवं संघर्षशील व्यक्ति श्री प्रकाश डबराल जी पिछले 4 दिनों से तहसील परिसर पुरोला में आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। अब यह लड़ाई आर और पार की हो चुकी है। श्री डबराल जी इससे पहले भी कई मांगों को लेकर आंदोलन कर चुके हैं। उनकी मांग है कि सरकार एक कमेटी बनाये और भौगोलिक क्षेत्र का अवलोकन करे, जनता की समस्याओं और वास्तविक स्थिति का जायजा ले। हवाई घोषणाओं से जमीनी स्तर पर न काम होता है और न समस्या का समाधान होता है। इसलिए सरकार को अब फैसला लेना ही होगा कि आखिर उनकी सरकार मंशा केवल आपस में लड़वाना मात्र है या फिर जनता को लेकर सचेत भी है।

इस आंदोलन में नवक्रान्ति के क्रांतिकारी और ओजस्वी अध्यक्ष श्री गजेंद्र सिंह चौहान जी, ऊर्जावान और कर्मठ नेत्री श्रीमती रेखा नौटियाल जोशी जी, एवं अन्य सैकड़ों समर्पित एवं संघर्षशील साथीगण धरना स्थल पर मौजूद है। स्थानीय लोगों से विनम्र विनती है कि श्री प्रकाश डबराल जी का साथ दें क्योंकि स्व श्री बर्फिया लाल जुवांठा जी के बाद जिन जन प्रतिनिधियों को यहाँ से चुनकर भेजा गया वे सब सरकार के पिट्ठू बनकर रह गए हैं उनका आम जनमानस की समस्याओं से कभी कोई लेना देना नही रहा है। इसलिए अब जरूरत है जनता को अपनी लड़ाई खुद लड़ने की तो कोशिश कीजिये कि जिला मुख्यालय की मांग पर सरकार फैसला लेने पर मजबूर हो जाय साथ ही अन्य समस्त समस्याओं पर भी चिंतन करें। निवेदक – RP विशाल ।।

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