उत्तरकाशी जिले के उपला टकनौर में स्थानीय पशुपालकों से वन विभाग द्वारा टैक्स वसूले जाने के फरमान से नाराज प्रमुख भटवाड़ी विनीता रावत ने डीएफओ उत्तरकाशी से वार्ता कर इसे हक हकूक में दखल बताया है, उन्होंने कहा कि पूर्व की ग्राम पंचायत ही पशुपालकों से टैक्स वसूलती आ रही है ये अधिकार उसी के पास रहना चाहिए।
उत्तरकाशी वन प्रभाग के डीएफओ संदीप कुमार ने बताया 1940 में बना यह कानून 2003 में राज्य सरकार ने संशोधित किया था। कानून बनाने का मकसद राजस्व एकत्र करना नहीं बल्कि जंगलों में निवास करने वाले पशुपालकों की भेड़ बकरियों को ऑर्गेनिक होने का प्रमाण देने के लिए किया गया है।

गिरीश गैरोला
बताते चले वूल बोर्ड ने वन विभाग से ऑर्गनिक ऊंन के बारे में आंकड़ा मंगा था ।डीएफओ संदीप कुमार ने बताया कि गांव से 8 किलोमीटर के रेडियस में पशुपालकों को कोई शुल्क नहीं देना होता यह उनके हक हकूक में टिहरी रियासत के राजा के समय से ही दिया जाता रहा है ।8 किलोमीटर के रेडियस से बाहर जाने पर अलग-अलग पशु के अनुसार टैक्स देना होता है इसी टैक्स के आधार पर पशुओं की गिनती होती है और उसी के आधार पर वूल बोर्ड को इन भेड़ और बकरियों के ऑर्गेनिक होने का प्रमाण पत्र जारी किया जाता है इसके साथ ही मीट के रूप में प्रयोग किए जाने वाले मांस को भी ऑर्गेनिक का प्रमाण पत्र मिलने के बाद मार्केट में 4 से 5 गुना अधिक रेट मिल जाते हैं। प्रभागीय वन अधिकारी उत्तरकाशी ने बताया कि वनअधिकार के रूप में स्थानीय लोगों को 1 – फ्री ग्रांट 2- चरान चुगान और 3 – घास पत्ती लेने की छूट दी जाती है।
गांव से 8 किलोमीटर रेडियस से बाहर के दायरे में जाने पर प्रति भेड़ प्रति सीजन 2 रुपए जबकि प्रति बकरी प्रति सीजन 4 रु लेने के बाद ही परमिट बनाया जाता है क्योंकि बुग्यालों में आवाजाही प्रतिबंधित है लिहाजा संबंधित रेंज ऑफिसर की रिपोर्ट के आधार पशुओं की गिनती और फिर उन्हें रूट प्लान दिया जाता है जो उनके परमिट पर अंकित किया जाता है।
इसी तर्ज पर भैंस पलको को 10 भैंस तक 12 रु प्रति भैंस, 11 से 20 पर 15 रु प्रति भैंस, 21 से 30 पर 18 रु प्रति भैंस और 30 से अधिक भैंस पर 24 रु प्रति भैंस चार्ज लिया जाता है।डीएफओ संदीप कुमार ने बताया कि प्राकृतिक रूप से जंगलों में निवास करने वाली भेड़ बकरियों की उन अथवा मांस को ऑर्गेनिक होने का प्रमाण पत्र मिल जाने के बाद उसकी अच्छी कीमत मिलने से किसान अथवा पशुपालक को ही फायदा होता है । यह रिपोर्ट बन विभाग से मांगी जाती है जिसके लिए फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर को पशुपालकों के पशुओं की गिनती और 8 किलोमीटर दायरे से बाहर जंगलों में रहने का परमिट देने के लिए उक्त फॉर्मेलिटी की जाती है , ताकि उन्हें ऑर्गेनिक होने का प्रमाण पत्र दिया जा सके जिसका अंतिम रूप से फायदा पशुपालकों को ही होता है इससे पहले ही ग्राम पंचायतों द्वारा किस आदेश और शासनादेश के तहत टैक्स वसूला जा रहा था इस पर वन विभाग ने अनभिज्ञता जाहिर की है।