परीक्षा नियंत्रक ही नही सचिव की भी हो गिरफ्तारी

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लोक सेवा आयोग भर्ती घोटाला
आयोग के अधिकारियों द्वारा पेपर बेचने के खुलासे के बाद आज हुआ जबरदस्त प्रदर्शन पूरी तौर पर मकसद में कामयाब रहा और आज के आंदोलन से भ्रष्टाचार का सवाल राष्ट्रीय मुद्दा बना। 49 डिग्री के तापमान पर 5 हजार (छात्रों की यह तादात और ज्यादा होती अगर आगामी 2 जून को सिविल सर्विसेज की परीक्षा न होती) से ज्यादा छात्रों की भागीदारी ने यह संदेश दे दिया कि मात्र परीक्षा नियंत्रक तक की गिरफ्तारी से काम नहीं चलेगा। क्योंकि योगी सरकार इतने बड़े भर्ती घोटाले के असली सूत्रधार आयोग के सचिव का बेशर्मी के साथ बचाव कर रही है।

अंकित तिवारी

इसीलिए मुख्यमंत्री द्वारा छात्रों को वार्ता हेतु लखनऊ आमंत्रित करने के बजाय लाठीचार्ज करा दिया। आरएसएस-भाजपा के लोग मुख्यमंत्री चयन प्रक्रिया को पारदर्शी व भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए पूरी तौर पर प्रतिबद्ध हैं और छात्रों का यह आंदोलन राजनीतिक विरोधियों द्वारा सरकार की छवि को धूमिल करने के लिए प्रायोजित किया जा रहा है। इस संवैधनिक संस्था की गरिमा की बहाली व भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के बजाय यादव आयोग बनाम चिलम आयोग तक समेत देने की सचेत कोशिश हो रही है। जो युवा अखिलेश सरकार के कार्यकाल में 2013-15 तक लोक सेवा आयोग के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में शामिल रहे होंगे, उन्हें अच्छी तरह याद होगा कि किस तरह भाजपा के आला नेताओं ने आंदोलन में शिरकत करते हुए वादा किया था कि न सिर्फ सरकार बनने पर सभी आयोगों में भ्रष्टाचार व भाईभतीजावाद का पूरी तौर पर खात्मा हो बल्कि लोक सेवा आयोग में भ्रष्टाचार को संस्थाबद्ध करने वाले तत्कालीन अध्यक्ष को जेल भेजा जायेगा। आयोग के इतिहास के भ्रष्टतम अध्यक्ष को जेल भेजवाने की वकालत योगी जी सहित सभी भाजपा नेता करते रहे हैं। पिछले विधान सभा चुनाव में तो प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चुनावी सभा में इसे प्रमुख मुद्दा बनाने हुए चयन प्रक्रिया को हरहाल में भ्रष्टाचारमुक्त बनाने एवं 90 दिनों के अंदर प्रदेश में खाली समस्त पदों पर भर्ती करने का वादा किया था। युवाओं का सवाल सीधे मुख्यमंत्री से है कि आखिर क्यों सीबीआई के एसपी को काम नहीं करने दिया गया, उन्हें प्रतिनियुक्त की अवधि बढ़ाने की सिफारिश नहीं की गई जबकि जांच को अंजाम तक पहंुचाने के लिए उनका जांच में बने रहना बेहद जरूरी था। अगर सीबीआई जांच में अवरोध नहीं खड़ा किया गया होता तो क्या यह मुमकिन था कि प्रमुख आरोपी से पूछताछ तक एक साल से ज्यादा की जांच अवधि में न की जाती। यह सचाई है कि योगी सरकार के कार्यकाल में सभी भर्तियों में पेपर लीक व भारी धांधली के आरोप लगे हैं।

अगर इसके खिलाफ आंदोलित छात्रों की बात मुख्यमंत्री द्वारा मान ली गई होती और धांधली में लिप्त अधिकारियों व नकल माफियाओं को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष बचाव न किया गया होता तो आज जिस तरह से प्रदेश भी की भर्तियों व चयन प्रक्रिया पर संकट के बादल मडरा रहे हैं उसकी नौबत न आती।
फिलहाल सिविल सर्विसेज की 2 जून की परीक्षा के मद्देनजर आंदोलन 2 जून तक के लिए स्थगित किया गया है। इस 2 दिन में आंदोलन से जुड़े सभी संगठन व वरिष्ठ प्रतियोगी वार्ता कर आगे की प्रदेशव्यापी रणनीति बनाने के लिए बैठक आयोजित करेंगे।

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