वरुणावत उपचार के नाम पर शहर को बहाने की तैयारी, क्यों चुप है आपदा प्रबंधन ?

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16 वर्षो से अधूरा वरुणावत का तांबा खानी उपचार।
हर वर्ष मानसून के समय चिंतित दिखाई देता है आपदा प्रबंधन विभाग।
एक वर्ष का समय पूरा ठेकेदार ने नही पूर्ण किया उपचार।
उपचार का मलवा डंपिंग ज़ोन में डालने की बजाय शहर के ऊपर स्थित बेंच पर डंप कर दिया।
पहली वरसात में ही उत्तरकाशी नगर में कहर बरपा सकता है ये मलवा।
गिरीश गैरोला, 

शिव नगरी उत्तरकाशी में वरुणावत उपचार के नाम पर फिर से जिला मुख्यालय के ऊपर नई आपदा का बम रख दिया गया है और संबंधित कार्यदायी संस्था घोड़े बेचकर सो रही है।

 

गंगोत्री और यमनोत्री को अपने मे समेटे उत्तरकाशी जिले का मुख्यालय चार धाम यात्रा पड़ाव के अलावा वर्ष 2003 में वरुणावत आपदा के बाद से भी देश और दुनिया मे अपनी पहिचान बना चुका है। 24 सितंबर 2003 से बिना बादल और वर्षा के मुख्यालय के ऊपर स्थित वरुणावत पहाड़ी से मिट्टी और पत्थरों की बरसात होने से देश भर की मीडिया ने इसे प्रमुखता से दिखाया था।
तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल विहारी बाजपेयी ने वरुणावत पर्वत के धार्मिक महत्व और शिव नगरी उत्तरकाशी की सुरक्षा के लिए 282 करोड़ रु का बजट स्वीकृत किया, और देश मे पहली बार किसी पहाड़ का उपचार सुरु हुआ।

dir=”auto”>282 करोड़ देख कर कई विभागों की जीभ में पानी आ गया किन्तु स्थानीय लोगो और व्यापारियों की सजगता से उपचार में 68 करोड़ ही खर्च हो पाया और वरुणावत मद में आया धन जिले के अन्य स्थानों पर खर्च कर गया किन्तु वरुणावत  उपचार में तांबा खानी वाले हिस्से को फिर भी  छोड़ दिया गया।

वर्ष 2003 से लेकर अब तक 16 वर्षो से हर वर्ष मानसून से पूर्व वरुणावत के तांबा खानी शूट के उपचार की बात होती रही है किन्तु वरसात समाप्त होते ही फिर से शांति।
जब तांबा खानी सुरंग ने डराना सुरु किया तो  सिंचाई विभाग ने दो पाइप डालकर शूट को तिरपाल से ढककर उपचार करना दिखा दिया। मीडिया ने शोर मचाया तो लोक निर्माण विभाग ने  6 करोड़ 22 लाख का एस्टीमेट उपचार के लिए पेश किया।
ठेकेदार कंपनी ने एस्टीमेट रेट से नीचे का रेट 4 करोड़ 23 लाख  डालकर टेंडर हासिल तो कर लिया किन्तु  उपचार में समझौता करना सुरु कर दिया। मीडिया में फिर शोर मचाया तो डीएम उत्तरकाशी डॉ आशीष चौहान ने मौके पर सीसी कैमरे लगाने के निर्देश दिए।
किन्तु ठेकेदार ने उसका भी तोड़ निकाल लिया सीसी कैमरे का मुंह कार्य की तरफ न हो कर दूसरी दिशा में मोड़ दिया। इतना ही नही सीसी कैमरे की मॉनिटरिंग डीएम आफिस में होनी थी किन्तु वो भी नही हुई हालांकि ये अलग बात है कि यमनोत्री यात्रा का 6 किमी पैदल मार्ग सहित यमनोत्री मंदिर इतनी दूरी के बावजूद डीएम आफिस के पास आपदा कक्ष में दिखाई देता है। साइट पर केवल टाइम काटने का काम हो रहा है तभी तो 27 जून 2018 को सुरु हुए इस उपचार कार्य को 26 जून 2019 को पूर्ण हो जाना था जो नही ही सका और सब फिर से उसे एक्सटेंशन देने की तैयारी चल रही है।
तांबा खानी वाले हिस्से के उपचार के दौरान निकलने वाले मलवे के लिए निर्धारित डंपिंग ज़ोन खाली पड़ा है उसमें एक टोकरा भी मलवा नही डाला गया । मलवे को ठेकेदार ने अपनी सहूलियत से पूर्व में उपचार से बनी हुई बेंच में ऐसे स्थान पर जमा कर दिया जहाँ मानसून की पहली बारिश में ही ये मलवा पहाड़ी से नीचे बहकर जिला मुख्यलय के लिए आपदा बम साबित हो सकता है। जिस उपचार के लिए 282 करोड़ रु स्वीकृत हुए थे क्या उसे फिर से आपदाग्रस्त करने का इरादा है?
 जिला धिकारी उत्तरकाशी डॉ आशीष चौहान ने बताया कि वे खुद मौके पर जाकर बारीकी से जांच करेंगे और यदि नगर को आपदाग्रस्त करने की  लापरवाही पाई गई तो आपदा प्रबंधन की धारा में कड़ी कार्यवाही की जाएगी।
पूर्व में उपचार में साइट इंजीनियर के तौर पर काम कर चुके देवेंद्र पंवार उर्फ बबलू ने बताया कि ठेकेदार द्वारा श्रमिक  कल्याण कानूनों का पालन नही किया जा रहा है। न तो साइट पर काम करने वाले मजदूरों को लेबर कार्ड बनाये गए और न उन्हें समय पर भुगतान किया जाता है। उन्होंने बताया कि खुद उन्हें भी एक वर्ष का वेतन नही दिया गया न तो कर्मचारियों को जीपीएफ का लाभ मिल रहा है और न ईपीएफ का।
इस संबंध में लोक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता से संपर्क किया तो उन्होंने खुद को दिल्ली में किसी विभागीय कार्य से होना बताया।
विभाग के अधिशाषी अभियंता धीरेंद्र पुंडीर ने तो तो फोन उठाया और न वे अपने आफिस में ही ही मिले।

https://youtu.be/yUuCH4mxoRE

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