बखरियाणा गांव की महिलाएं नेचुरल फाइबर से सजावटी सामान बनाकर रच रही आत्मनिर्भरता की नई कहानी
– स्वरोजगार की राह पर बढ़ता टिहरी, महिलाओं की मेहनत ला रही रंग
टिहरी गढ़वाल का बखरियाणा गांव इन दिनों उत्तराखंड की ग्रामीण महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनकर उभर रहा है। खेती-बाड़ी से जुड़ी महिलाएं अब प्राकृतिक रेशों—जैसे जूट और भीमल—से खूबसूरत और उपयोगी सजावटी सामान बना रही हैं। इन उत्पादों में चप्पलें, डोंगे, पायदान, टोकरियाँ और फ्लावर पॉट जैसी चीज़ें शामिल हैं, जो न केवल पारंपरिक संस्कृति को जीवित रखती हैं, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर भी बना रही हैं।

यह बदलाव संभव हो पाया है जिला उद्योग केंद्र, नरेंद्रनगर, टिहरी गढ़वाल के तत्वावधान में चलाए जा रहे दो माह के प्रशिक्षण कार्यक्रम के कारण, जो कि भारत सरकार की “वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट” योजना के तहत आयोजित किया गया है। 25 मार्च से शुरू यह प्रशिक्षण 25 मई तक चलेगा, जिसमें विशेषज्ञ ट्रेनर पूर्णिमा पंवार द्वारा महिलाओं को नेचुरल फाइबर से सजावटी सामान बनाने का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
हर दिन 300 रुपये की आय, आत्मविश्वास में हो रहा इज़ाफ़ा
बखरियाणा की महिलाएं अब रोज़ाना करीब 300 रुपये तक की आय अर्जित कर रही हैं। महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष विनीता देवी बताती हैं कि कैसे यह प्रशिक्षण उनके जीवन में आत्मविश्वास और आर्थिक मजबूती लेकर आया है। वे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का आभार व्यक्त करते हुए कहती हैं कि सरकार की योजनाएं अब ज़मीन पर असर दिखा रही हैं।
महिलाओं के लिए नई शुरुआत, गांव के लिए नया भविष्य
स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 20 महिलाएं, जिनमें महालक्ष्मी, जानवी, सौम्या जैसी महिलाएं शामिल हैं, इस प्रशिक्षण से लाभान्वित हो रही हैं। यह सिर्फ हुनर की बात नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में एक मजबूत कदम है।
शासन-प्रशासन की योजनाएं बन रही उम्मीद की किरण
जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक हरीश चंद्र हटवाल ने बताया कि महिलाओं को रॉ मटेरियल भीमल व जूट मुफ्त उपलब्ध कराया जा रहा है। प्रशिक्षण के बाद महिलाएं खुद का व्यवसाय शुरू कर सकती हैं, जिससे स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा और पलायन जैसे मुद्दों पर भी अंकुश लग सकेगा।
Meru Raibar की विशेष टिप्पणी:
बखरियाणा की यह कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की महिलाओं की प्रेरणा बन सकती है। जब हुनर, सरकार की योजनाएं और ग्रामीण महिलाओं की मेहनत एक साथ आती हैं, तो आत्मनिर्भरता केवल एक सपना नहीं रह जाती — वह एक सच्चाई बन जाती है।
