अपने गाँव लौटे प्रवासी, शुरू की विकास की मुहिम

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“प्रवासी उत्तराखण्डियों का अपने गांवों से जुड़ाव बना प्रेरणा का स्रोत”
शिक्षा, स्वरोजगार और संस्कृति संवर्धन की दिशा में हो रहे ठोस प्रयास

टिहरी गढ़वाल, 3 जून:
उत्तराखंड के प्रवासी जन अब सिर्फ अपने गांवों की यादों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनकी जड़ें आज भी पहाड़ से उतनी ही जुड़ी हुई हैं जितनी दिल से। इसी क्रम में मंगलवार को जिलाधिकारी मयूर दीक्षित की अध्यक्षता में प्रवासी उत्तराखण्डियों द्वारा गोद लिए गए गांवों में हो रहे कार्यों की समीक्षा बैठक आयोजित की गई। बैठक में कई प्रवासी उत्तराखण्डियों ने व्यक्तिगत रूप से, तो कुछ ने वर्चुअल माध्यम से जुड़कर अपने कार्यों और योजनाओं को साझा किया।

बैठक में अप्रैल माह में ग्राम स्तरीय प्रवासी समिति द्वारा तैयार की गई कार्ययोजना पर विस्तृत चर्चा हुई।

📌 सुनारगांव और केमरिया सौंण को गोद लेने वाले देव रतूड़ी ने बच्चों की शिक्षा और युवाओं के रोजगार को लेकर अपने विचार साझा किए।
📌 घनसाली के तितरौना गाँव को लंदन निवासी प्रीतम सिंह ने गोद लिया है, जहां वह बंजर ज़मीन को उपजाऊ बनाकर पशुपालन व महिला स्वरोजगार के माध्यम से पलायन रोकने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। जिलाधिकारी ने इस पर लैंड सर्वे कराने के निर्देश दिए।

📌 मंज्याडी और मुयालगांव में बी.पी. अंथवाल द्वारा रोजमेरी नर्सरी और कीवी बागवानी की योजना रखी गई, जिस पर डीएम ने स्वयं गांव का भ्रमण कर योजना को आगे बढ़ाने की बात कही।

📌 जामनीखाल में एम.पी. भट्ट द्वारा पहाड़ी शैली में होमस्टे, स्थानीय कृषि उत्पाद जैसे ज़ीरे की ड्रिंक और हल्दी-अदरक की खेती को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य आरंभ किया गया है।

📌 चंबा स्थित पूजालडी गाँव में आयरलैंड निवासी विकास और विनोद द्वारा “ऑक्सीजन विलेज” की परिकल्पना के अंतर्गत ऋषिकेश देवता मंदिर, बच्चों के लिए एम्यूज़मेंट पार्क व सांस्कृतिक निर्माण कार्य जारी हैं। उन्होंने गाँव को जोड़ने वाली 3 किमी सड़क निर्माण की मांग रखी, जिस पर डीएम ने शीघ्र कार्यवाही का आश्वासन दिया।

🔸 ज़मीनी जुड़ाव और प्रतिबद्धता की मिसाल बने ये प्रवासी, प्रशासन का भरपूर सहयोग

बैठक में सीडीओ वरुणा अग्रवाल, डीडीओ मोहम्मद असलम सहित यूनाइटेड किंगडम से जयपाल रावत, महादेव सेमल, प्रीतम सिंह, और अहमदाबाद से वीरेंद्र रावत भी भौतिक एवं वर्चुअल रूप से सम्मिलित रहे।

जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने इन प्रयासों को “आत्मनिर्भर पहाड़” की ओर एक सशक्त कदम बताते हुए सभी प्रवासी उत्तराखंडियों को धन्यवाद दिया और कहा कि “गांवों का विकास सिर्फ सरकार नहीं, भावना से भी होता है — और यही भावना आज दिख रही है।”

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