*गुजरात के जाने माने नागरिक संगठनों, पर्यावरणवादियों से शासन को कानूनी नोटिस*
अंकित तिवारी
नर्मदा की मौत सबसे अधिक गुजरात की जनता अपने आखों के समक्ष देख रही है ! उन्हें अब पता चला है कि सरदार सरोवर बांध गुजरात की ‘जीवाडोरी’ याने जीवनरेखा साबित होने के बदले नर्मदा की ही मरणरेखा साबित हो रही है | नर्मदा अब बांध के नीचेवास में पानी नहीं के बराबर बहने से, समुन्दर के अंदर घुस आने से, गाव – शहरों का मैला उस कम पानी में बिना कोई उपचार किये छोड़ा जाने से तथा उद्योगों से दूषित पदार्थ, खेती और अन्य कार्यो से निकले पदार्थों से पूर्णत: प्रदूषित हो चुकी है | नर्मदा गंदे नाले समान हो गयी है |
नर्मदा के, सरदार सरोवर बांध के नीचेवास के क्षेत्र में जाँच करने बाद 12 अप्रैल 2019 के रोज, पर्यावरण सुरक्षा समिति, समस्त भरूच जिला माछीमार समाज, नर्मदा प्रदूषण निवारण समिति, भरूच सिटीझन्स कौन्सिल, प्रकृति सुरक्षा मंडल, ब्रेकिस वाँटर रिसर्च सेंटर की ओर से सामूहिक कानूनी नोटिस जारी की है | नोटिस नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण और उसके सभी उपदल, नर्मदा मेन कैनाल कमिटी, केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय, और सरदार सरोवर जलाशय नियंत्रण कमिटी आदि को भेजी गयी है|
नोटीस में लिखा है कि नर्मदा अब नदी के बदले नाले में परिवर्तित हुई है| उसमें अधिकतम 500 मिलीग्राम / लीटर के बदले सरासरी 19000 मिलीग्राम / लीटर तक टीडीएस बढ़ गया है | पानी में डिसोल्वड ऑक्सीजन की मात्रा 5 मिलीग्राम / लीटर से कम हो चुकी हैं| समुंदर का पानी, औद्योगिक दूषित पदार्थ आदि, नर्मदा में पानी की पूर्णत: कमी होकर, उसमें मिले हुए हैं | भूजल की जाँच के बाद भी यह पाया गया है कि बाँध से कुछ किमी. नीचे भी पानी में 1600 मिलीग्राम / लीटर से अधिक TDS है | 161 किमी बांध के नीचेवास की नर्मदा की लंबाई की नर्मदा की लम्बाई है | वहाँ लाखों का निवास, खेती , उद्योग चल रहे हैं |
हिन्दू तीर्थो में हर साल लाखो लोग यात्री बनकर आते हैं | नर्मदा परिक्रमा दुनिया की एक अनोखी धार्मिक आध्यात्मिक परंपरा है |
नर्मदा कंट्रोल आथरिटी ( नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ) की जिम्मेदारी रही है कि वह नर्मदा में पानी छोड़ने पर नियंत्रण रखे – जरूरत की जाँच, पर्यावरणीय अध्ययन के आधार पर पानी का छोड़ना जारी रखे ! लेकिन 1990 के दशक में मात्र 600 क्युसेक पानी छोड़ने की जरूरत एक वैज्ञानिक के रिपोर्ट के आधार पर मंजूर की गयी लेकिन उतना पानी भी नहीं छोड़ा जा रहा है | साथ ही अब जनसंख्या कई गुना बढ़ गयी है, लेकिन जरूरत का नापना इतने सालों तक नहीं हुआ है | आज तत्काल जरूरी है कि 4000 क्युसेक्स पाने बांध के नीचेवास के लिए छोड़कर नर्मदा को बहती रखना | साथ ही जरूरी है, बांध के नीचे चल रहे या नियोजित गरुडेश्वर वेयर, भाड़भूत बराज जैसे कार्यों पर नर्मदा पर असरों का पूरा अध्ययन और पानी की जरूरत आदि की जाँच होने तक रोक लगाना |
सभी जनसमूह व जनसंगठनों ने , पर्यावरणीय, विशेषज्ञों ने कहा है कि सरदार सरोवर परियोजना संपूर्ण अध्ययन और वैज्ञानिक आकलन के बिना आगे धकेली गयी, यह अब साबित हो चुकी बात है | साथ ही ‘ सरदार पटेल स्टेच्यु आँफ यूनिटी ‘ के नर्मदा, उसकी पर्यावरणीय व्यवस्था आदि पर असरों का अध्ययन नहीं किया गया और पर्यटन की विविध योजनाएँ आकी जा रही है, जो कि नर्मदा में विनाश लाएगी | जिस नदी पर विकास का दावा किया गया, उस नदी का ही विनाश जनता की श्रद्धा, आजिविका तथा प्राक्रतिक संसाधनों को गंभीर ठेस पहुंचाकर अपरिचित तथा अपरिवर्तनीय नुकसान का कारण बनेगी |
कानूनी नोटिस पर त्वरित जवाब के साथ, सर्वोच्च अदालत के नर्मदा पर्यावरण पर घोषित 22.2.2017 के फैसले पर अमल की मांग भी नोटीस द्वारा सभी अधिकारे संस्थाओं से की गयी है |
नर्मदा बचाओ आंदोलन गुजरात की इन संगठनों की पहल का स्वागत करता है| नर्मदा बचाओ आंदोलन ने 30 साल पहले से दी हुई चेतावनी सही ठहरी है | मोदी शासन ने पिछले कुछ सालों में तो क़ानून, न्यायालय के फैसले, वैज्ञानिक निकष सभी को अनदेखा करके बांध पूरा करना, गेट लगाना, पुनर्वास और पर्यावरणीय हानिपूर्ति के झूठे वादे करना तथा गुजरात के हिस्से का पानी कच्छ – सौराष्ट्र की सूखाग्रस्त जनता के बदले (कैनाल नेटवर्क अधूरा छोड़कर ) 481 इंडस्ट्रीज की ओर मोड़ना किया | इस शासन ने आंदोलनकारियों पर विकास विरोधी के आरोप लगाये, प्रत्यक्ष में स्वयं विकास विरोधी और विज्ञान विरोधी साबित किया | गुजरात की जनता अब जागे और नर्मदा बचाने की लड़त चलाएं यह तत्काल और बेहद जरूरी है !