उत्तरकाशी का पौराणिक माघ मेला संपन्न हो गया है ।इस बार माघ मेले को करवाने और न करवाने को लेकर मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच अटका रहा । अंत में सुप्रीम कोर्ट ने माघ मेला कराने की अनुमति दी, लेकिन वह अनुमति किन शर्तों के आधार पर दी गई यह अब बड़ा सवाल बन गया है।
उत्तरकाशी माघ मेले के दौरान और मेला समाप्ती के बाद चर्चा इसी बात पर रही कि मेले की कमाई में हिस्सेदार कौन-कौन होगा ? और किस तरह से कमाई का बंटवारा होगा ? अब मेला निपटने के बाद मेले मेला मैदान से निकले कूड़े का निस्तारण कैसे होगा , इस पर कई सवाल उठ रहे हैं। अब जो कर्मचारी मैदान में कूड़े का निस्तारण कर रहे हैं साफ तौर पर देखा जा सकता है कि प्लास्टिक के कूड़े को आग के हवाले कर निस्तारण किया जा रहा है ,।
तो क्या इसी तरह से कूड़े का निस्तारण होगा ? क्या एनजीटी के नियमों का पालन हो रहा है? क्या पर्यावरण मामलों को देखकर कूड़े का निस्तारण हो रहा है ? बड़ा सवाल यह है कि माघ मेले का जो मंथन किया गया उसमें अमृत के लिए कई हिस्सेदारी हुई , लड़ाई झगड़े हुए लेकिन इस कूड़े और प्लास्टिक के कूड़े से जलाने से निकलने वाले धूँए का जहर कौन पिएगा ? क्या उत्तरकाशी की जनता को हर बार नीलकंठ बन कर ही ये जहर पीना पड़ेगा ? क्या मेले की कमाई में हिस्सेदार लोग इस पर कभी गौर करेंगे ? क्या जिम्मेदार संस्थाएं कभी इस बात पर गौर करेंगे कि कूड़े का निस्तारण किस तरह से हो रहा है ? क्या एनजीटी इस बात को देखेगी कि कूड़े का जहर पीने के लिए लोग मजबूर क्यों है?
एक रिपोर्ट