राज्य सरकार की पिरुल नीति पर बैंकों का अड़ंगा

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-दो वर्षो से परवान नहीं चढ़ पाई योजना

देहरादून। राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना चीड़ पिरूल आधारित विद्युत उत्पादन और स्वरोजगार के उद्देश्य से पिरुल व अन्य प्रकार के बायो ऑयल से एमएसएमई के तहत पेरूल नीति दो साल से सरकार धरातल पर नहीं उतार पा रही है। जबकि उरेडा और अन्य सभी विभाग बड़ी दिलचस्पी के साथ इस नीति को सफल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन बैंकों इसमें अड़ंगा डाल रहे हैं। बैंक फाइलों को निरस्त कर उद्यमियों को मायूस कर रहे हैं। जिससे सरकार की इस बहुआयामी योजना को दो वर्ष से परवान नहीं चढ़ पा रही।
वर्ष 2018 की पेरूल नीति को स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लांच किया था और उरेडा विभाग को इस योजना को सफल बनाने की जिम्मेदारी भी दी थी। यूपीसीएल के साथ भी बिजली खरीदने का अनुबंध भी हुआ था। राज्य भर मे प्रथम चरण में इक्कीस उद्यमियों को पेरुल से बिजली उत्पादन के प्लांट लगाने के लिए शासन ने एम एस एम ई के तहत स्वीकृति दी थी। उद्यमियों ने सभी आवश्यक दस्तावेज जमा कर प्रशासनिक स्वीकृति भी ली और फाइलें वित्त पोषित के लिए बैंकों को भेजा। दो साल बीत गये मगर बैंकों ने अब तक केवल दो कुमांऊ और एक गढ़वाल से ही प्लांट उद्यमियों को वित्त पोषित किया है। और शेष अन्य लोगों की फाइलों पर अनावश्यक आपत्तियां लगाकर फाइलें वापस डीआईसी को भेज दी जिससे इस महत्त्वपूर्ण नीति को धरातल पर नहीं उतारा जा सक रहा है। उद्यमियों ने अब तक इस योजना पर अपने लाखों रूपये भी डुबा दिये मगर बैंकों द्वारा अनावश्यक परेशान किये जाने से वै निरास है।
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