जोशीमठ प्रखण्ड की उर्गम घाटी के यक्षराज हिवालु जाख देवता दशकों बाद रथ यात्रा के प्रवास पर बर्फ से लकदक जंगली मार्ग से होकर अपने सबसे बड़े भाई बजीर देवता से भेट हेतु छेत्र के दूरस्थ गाँव डुमक की और प्रस्थान कर चुके है,बीते दिन जाख देवता भरकी भूम्याल जी के गाँव से रात्रि विश्राम हेतु देवग्राम के बांसा गाँव पहुँचे थे। आज हिवालु जाख देवता करीब 22 किमी पार कर रात्रि हेतु अपने बड़े भाई वजीर देवता से भेंट करेंगे।
आप तस्वीरो में देख सकते है की बर्फ के रास्तों की परवाह किये बगेर किस तरह सीमांत के लोग आज भी अपनी बहुमुल्य संस्कृति और मान्यता को कैसे संजोये है,पुनः वापसी में कलगोठ नंदा माता व कोधुडिया जाख राजा से मिलन करेंगे।बता दें कि जोशीमठ प्रखण्ड को लोक मान्यताओं में यक्ष गंधर्व भूमि कहा जाता है, यहाँ पर 60भाई यक्ष जिन्हे जाख देबता के रूप में छेत्र के अलग अलग गॉवों में एक तय सीमा के तहत पूजा जाता है,जिसमे सबसे बड़े भाई डुमक गाँव के बजीर देवता है और सबसे छोटे भाई थेङ्ग गाँव में पूजे जाते है,समय समय पर ये सभी यक्ष देवता गाँव गाँव की सीमा तक ग्रामवासियो को दर्शन देते हुए उनसे उपजाऊ भूमि के एवज में भूमि कर अनाज के रूप में लेने आते है,उर्गम घाटी के ग्रामीण आज भी वही पौराणिक मान्यता को जीवित रखते हुए बर्फ़ीली पगडंडी से गुजर कर आज डुमक गाँव के बजीर देवता के दर्शन करेंगे,