चमोली – जीतू की याद मे नहीं होती खेत मे रोपाई

Share Now

चमोली।

वीर भड़ की भूमि उत्तराखंड अपने मे कई पौराणिक रीति रिवाज और कथाओ को समेटे हुए है | बीर भड़ के बैल सहित जमीन के अंदर समा जाने के दुख मे चमोली जिले मे 9 गाते के दिन खेत मे कोई भी किसान रोपाई नहीं करता है |

सैकोट,  मालधार चमोली जिले का एक ऐसा गाँव जहाँ ग्रामीण आज भी अपने पारम्परिक तरीके से वाद्य यंत्रों की थाप पर रोपाई (रोपणी) का शुभारंभ करते है। मान्यताओं के अनुसार 9 गते अषाढ़ के दिन आज भी गढ़वाल क्षेत्र में रोपाई नही की जाती है। इसके पीछे भी एक लोक कथा प्रचलित है।

         अषाढ़ के महीने की 9 गते की रोपणी को लेकर एक दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है | मान्यता है कि इस दिन रोपणी के सेरे (रोपाई के खेत) में जीतू के प्राण नौ बैणी आछरियों(परियाँ) ने हर लिए थे। जीतू और उसके बैलों की जोडी रोपाई के खेत में हमेशा के लिए धरती में समा गयी थी | पहाड़ के सैकड़ों गाँवों में हर साल जीतू बगडवाल की याद में बगडवाल नृत्य का आयोजन किया जाता है।बगडवाल नृत्य पहाड़ की अनमोल सांस्कृतिक विरासत है। जिसमें सबसे सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र होता है “बगडवाल की रोपणी का दिन” ,  इस दौरान रोपणी(रोपाई) को देखने अभूतपूर्व जनसैलाब उमड़ता है।

जीतू बगड्वाल के जीवन का 9 गते अषाढ़ की रोपाई का वह दिन अपने आप में विरह-वेदना की एक मार्मिक समृत्ति समाये हुए है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!