कॉफी के मग में वर्षा का पानी

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जेट्टी को पकड़े या चाय का उबाल देखे?
फ्लोटिंग जेट्टी के जाते ही धंदा हुआ मंदा।
गिरीश गैरोला
हाथ मे कॉफी का प्याला , झील के बीच जगमग रोशनी के साथ लहरों पर सवार होकर पर्यटन का सपना बीच मे ही टूटने लगा है। वर्ष 2010 में मुख्यमंत्री की घोषणा में स्वीकृत जोशियाड़ा झील में बोटिंग 8 वर्ष बाद सुरु तो हुई किन्तु इसे मेंटेन रखने में अभी से पसीने छूटने लगे है। पर्यटन से जुड़े बिभिन्न विभागों के बीच आपसी तालमेल के अभाव में बरसात से इन वक्त पहले सुरु हुए लहरों पर कॉफी पीने के ख्वाहिश को झटका लगा है।

पर्यटन के सपने की तरफ कदम बढ़ाती उत्तरकाशी की जोशियाड़ा झील पर वरसात ने खूब पानी डालने का काम किया है। झील पर तैरते रेस्टोरेंट में चाय कॉफी के साथ सेल्फी लेने के लिए उमड़ रही भीड़ के कदम मानसून के चलते ठिठक गए है।

 रेस्टोरेंट चला रहे अजय सिंह रावत ने बताया कि जब तक झील में फ्लोटिंग जेट्टी मौजूद रही तब तक प्रतिदिन 5 से 7 हजार का काम निकल रहा था किंतु बरसात में घटते – बढ़ते झील के जल स्तर के बीच कई बार बह चुकी फ्लोटिंग जेट्टी को तीन महीने के लिए डीएम के निर्देश पर हटा लिया गया है।

अजय ने बताया कि जेट्टी के हटते ही धंदा भी मंदा पड़ गया है , 5 से 7 हजार प्रतिदिन के सेल अब दो सौ से एक हजार के बीच सिमिट कर रह गयी है। दरअसल जिला प्रशासन द्वारा झील में रेस्टोरेंट चलाने और बोटिंग दोनों कार्य एक ही संस्था को दिए गए थे । इधर दूध और चाय में उबाल पर नजर रखे तब तक जेट्टी बहकर आगे निकल जाती, जल विधुत निगम ने भी जल स्तर घटने और बढ़ने को लेकर संस्था के साथ बेहतर तालमेल नही बनाया जिसका खामियाजा अब आजीविका मिशन को भुगतना पड़ रहा है।

इतना ही नही झील में बोटिंग के लिए उतारी गयी पैडल बोट भी सुरक्षा के लिहाज से पानी से हटाकर किनारे पर रख दी गयी है।  ऐसा करने से नाव के बहाने का खतरा तो टल गया किन्तु खुले में रखी इन नाव में बरसात का पानी जमा होकर नाव को खराब कर रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता औए बीजेपी के वरिष्ठ नेता लोकेंद्र बिष्ट की माने तो कार्य सुरु करना बेहद आसान है किन्तु इसे मेन्टेन रखना काफी मुश्किल भरा होता है। उन्होंने कहा कि जल विधुत निगम , पर्यटन विभाग ,जिला प्रशासन और आजीविका संस्था के बीच परस्पर तालमेल के अभाव के चलते ही दिक्कते आयी है ।
उन्होंने उम्मीद जताई कि बरसात के तीन महीने बाद झील में तैरते रेस्टोरेंट पर एक बार फिर कॉफी मग के साथ लुफ्त लेने का मौका मिलेगा, किन्तु जल विधुत परियोजना  के बैराज पर बोटिंग का सपना बिना बेहतर तालमेल में पूर्ण होने में अभी भी शक बना हुआ है। दरअसल चाय कॉफी पिलाकर ग्राहकों को संतुष्ट करना अलग बात है और नौका विहार की तकनीकी जानकारी के साथ बोटिंग कराना बिल्कुल अलग चैप्टर है , और एक ही व्यक्ति दोनों काम एक साथ करेगा यो तय है कि या तो चाय उबल कर गिरेगी या फ्लोटिंग जेट्टी बहकर आगे निकल जायेगी।
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