नामांकन रद्द, अंदरूनी खेल और सियासी खामोशी… कांग्रेस में घमासान!
टिहरी। (साभार – गजेंद्र रावत) टिहरी में कांग्रेस के लिए ये जिला पंचायत चुनाव सियासी महाकाल बनकर टूटे हैं। जिन पर पार्टी को सहारा था, वही आज उसकी नैया डुबोने में जुटे हैं। कांग्रेसी नेता, खुद को “कट्टर कांग्रेसी” कहते नहीं थकते, लेकिन पर्दे के पीछे ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के सबसे बड़े सिपाही बन बैठे हैं।
45 सीटों वाली जिला पंचायत में कांग्रेस के सिर्फ 29 उम्मीदवार ही मैदान में हैं। बाकी सीटों पर सन्नाटा है… और कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां कांग्रेस को कोई उम्मीदवार ही नहीं मिला। क्या कांग्रेस का सियासी कुनबा वाकई बिखर रहा है?
“कांग्रेस की ये हालत देख लोग तरस खाने के बजाय मजाक उड़ा रहे हैं। पार्टी के अपने ही लोग गद्दारी कर रहे हैं।” — टिहरी के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता
भूतसी सीट से सीता देवी का नामांकन एकदम साफ था, फिर भी रिटर्निंग ऑफिसर ने खुद रिव्यू कर नामांकन खारिज कर दिया। कानून साफ कहता है कि RO अपने ही फैसले पर रिव्यू नहीं कर सकता। लेकिन टिहरी में कानून भी शायद सियासत के सामने बेबस है।
चौंकाने वाली बात ये रही — सीता देवी के लिए कोई भी कांग्रेस का वकील बाहर नहीं निकला। सबने दरवाजे बंद कर लिए, और फेसबुक पर ‘लोकतंत्र की हत्या’ के लंबे-लंबे स्टेटस डालने लगे।
“कट्टर कांग्रेसी खुद ही दरवाजा बंद कर रजाई ओढ़ लेते हैं, और फेसबुक पर क्रांति कर देते हैं।” — एक स्थानीय पत्रकार
घनसाली में तो और कमाल हुआ। वहां कांग्रेस ने शंकरपाल सजवाण को टिकट दिया, लेकिन उसी ने बीजेपी की सोना सजवाण को निर्विरोध जिताने के लिए याचिका दायर कर दी। कांग्रेस के लोग तब भी गायब थे।
कांग्रेस के पुराने नेता धनी लाल शाह, जिन्हें पार्टी ने ब्लॉक प्रमुख बनाया था, उनके बेटे ने भी बीजेपी के खिलाफ अपना नामांकन वापस ले लिया। मतलब, ‘कांग्रेस मुक्त भारत अभियान’ अब दूसरी पीढ़ी में भी जारी है!
और धनोल्टी विधानसभा का किस्सा सुनिए — वहां कांग्रेस को एक भी अनुसूचित जाति का उम्मीदवार नहीं मिला। क्या यही कांग्रेस का ग्रासरूट नेटवर्क है?
“ये कांग्रेस नहीं, खुद के खिलाफ ही साजिशों का संगठन बन गया है।” — टिहरी के एक नाराज कांग्रेस समर्थक
रिटर्निंग ऑफिसर के फैसले भी अब सवालों के घेरे में हैं। कानून की धज्जियां उड़ाई गईं, विपक्ष के नामांकन रद्द हुए और सत्ता पक्ष बचा रहा।
कांग्रेसियों को लगता है नैनीताल से खीम सिंह रौतेला की बाल मिठाई आकर सब ठीक कर देगी? तो भाई, वो लोग आज भी देहरादून-नैनीताल के चक्कर काट रहे हैं, तारीख पे तारीख मिल रही है, इंसाफ नहीं।
तो सवाल ये है — कांग्रेस को दुश्मनों से ज्यादा अपनों से खतरा है। क्या कांग्रेस को अब राहुल गांधी के स्लीपर सेल ढूंढने पड़ेंगे… अपनी ही पार्टी में?
क्योंकि राजनीति में सबसे खतरनाक दुश्मन… वही होते हैं, जो आपके खेमे में खड़े दिखाई देते हैं।