शिव नगरी की सुरक्षा से फिर खिलवाड़ -वरुणावत तांबा खानी उपचार

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कमीशन पर भारी वरुणावत उपचार।

कमीशन की चाहत में अपनी जुबान बंद रखने वाले लोक निर्माण विभाग उत्तरकाशी ने एक बार फिर शिव नगरी में रहने वाले हजारों लोगों की जिंदगी से रिस्क ले लिया है।
स्लोप प्रोटेक्शन में  अनुभवहीन लोक निर्माण विभाग की लापरवाही से तांबा खानी शूट वरुणावत में निर्माण की खामी गले की हड्डी बन गयी है जिसे अब न उगलते बनता है और न निगलते। ठेकेदार पर विभाग की सुरुवती मेहरबानी उसे अग्रिम भुगतान से लेकर आधी लम्बाई की रोक बोल्टिंग करने तक जारी है। चंद रुपयों के लालच में शिव नगरी उत्तरकाशी की सुरक्षा से फिर खिलवाड़ की कोशिश जारी है। फर्क ये है कि वर्ष 2003 में काँग्रेश सरकार ने ये भूल की तो वर्तमान में बीजेपी सरकार इसे फिर दोहराने में लगी है। पहाड़ी की सुरक्षा के लिए 6 मीटर लंबाई में लगने वाले रोक बोल्ट सिर्फ तीन से चार मीटर लंबाई में ही लग रहे है।
वर्ष 2003 में उत्तरकाशी में  दरकते वरुणावत पहाड़ के उपचार के लिए स्वीकृत 282 करोड़ की बडी धनराशि को पर्वत के उपचार की बजाय इधर उधर खर्च कर दिया गया था। उस वक्त इस बड़े बजट को देखते हुए कई विभागों और निर्माण दाई संस्थाओं ने मोटी कमाई की उम्मीद से खुद को वरुणावत उपचार से जोड़ने के पूरे प्रयास किये किन्तु पहाड़ी की तलहटी में रहने वाले लोगो की संघर्ष समिति ने उनके मंसूबो को पूरा नही होने दिया । ऊपरी कमाई पर लगाम लगते देख ठेकेदार सहित विभाग ने भी उपचार की रकम को इधर उधर भेजने में ही भलाई समझी। और पर्वत के उपचार में तांबा खानी नाला को बिना उपचार के ही छोड़ दिया , हालांकि गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सुरंग निर्माण किया गया जो निर्माण में विवाद के चलते आज तक हैंडओवर नही हो सकी।
बरसात में तांबा खानी शूट से फिर भूस्खलन सुरु होने पर एक बार फिर भू बैज्ञानिक  और अधिकारियों के साथ तकनीकी इंजीनियर की फौज पर्वत के शीर्ष पर दौड़ने लगी। आनन फानन में कभी इसे तिरपाल से ढकने कभी दो पाइप लगाने तक किये गए उपचार पर जब खूब चुटकुले  बनने लगे तो एक बार फिर तांबा खानी शूट के उपचार के लिए 6.2 करोड़ रु स्वीकृत किये गए। टीएचडीसी के तकनीकी निर्देशन में लोक निर्माण विभाग को देखरेख की जिम्मेदारी दी दी गयी।
टेंडर में मौके  की जटिलता को देखते हुए भारत कंस्ट्रक्शन कंपनी ने एस्टीमेट से
ऊपर अपना रेट भरा था जबकि नोएडा की sipl सुकृति इंफ्रा कंपनी ने एस्टीमेट दर से नीचे के रेट भर दिए थे जिस कारण बिना कंपनी का बैक ग्राउंड और तकनीकी  क्षमता देखे कार्य का आबंटन कर दिया गया। यही गलती वर्ष  2003 में वरुणावत उपचार के मुख्य उपचार में श्रृंग कंस्ट्रक्शन कंपनी को उपचार कार्य देकर की गई थी। कंपनी के सैम्पल फेल होने के बाद भी इस पर कोई कार्यवाही नही हुई उल्टा कंपनी आर्बिट्रेशन में चली गयी थी।
तांबा खानी शूट के वर्तमान उपचार में लगी sipl को टीएचडीसी द्वारा दी गयी ड्राइंग के आधार पर करीब 4.2 करोड़ के काम करने है जबकि जाला आदी अन्य निर्माण एक्सट्रा आइटम बनाकर करीब 6 करोड़ खर्च कराए जाने की तैयारी है।
ठेकेदार ने 65 एंकर का लोहा साइट पर भेजा ही था कि विभाग ने उसे 40 लाख का अग्रिम भुगतान बिना काम के ही कर दिया। जबकि दूसरा रनिंग बिल 12 लाख का इस उम्मीद से बनाकर दिया कि बड़ी पार्टी से उन्हें भी  भोग मिलेगा  किन्तु ऐसा नही हुआ तो विभाग में हड़कंप मच गया। अब कंपनी की कमियां तलास की जाने लगी ताकि ठेकेदार को टाइट किया जा सके। किन्तु तक देर दो चुकी थी। ठेकेदार ने जितना काम अभी तक किया है उससे अधिक  उसे  भुगतान मिल चुका है।
उपचार में पहाड़ी को ड्रिल कर उसमें 6 मीटर लंबे एंकर ग्राउट किये जाने थे किंतु सुत्रो की माने तो मौके पर 3 से चार मीटर लंबे ही एंकर  ग्राउट किये गए है। हैरानी की बात ये है कि ठेकेदार के पास 6 मीटर ड्रिल करने वाली एसेम्बली ही नही है तो 6 मीटर एंकर कैसे लग सकते है। मौके पर करीब 45 एंकर लग चुके है जिनमे 30 से 35 में केवल 3 से चार मीटर लंबे ही लगे है। कुछ स्थानों पर ड्रिल के टूटने पर दूसरा टुकड़ा जोड़ कर लंबाई पूरी की गयी है। जिनमे से कुछ को तो मौके पर अभी भी देखा जा सकता है जिनमे ग्रोउटिंग नही हुई है। मौके पर कुल 8 हजार रनिंग मीटर एंकर का लोहा रॉड लगनी है जिसकी कॉस्ट पर रनिंग मीटर करीब एक हजार रु है जबकि एंकर के लिए प्रति होल की कीमत करीब 80 हजार रु है ऐसे में यदि 6 मीटर के स्थान पर 3 से चार मीटर ही एंकर रॉड लगी तो प्रति होल 25 से 40 हजार की बचत ठेकेदार हो अलग से होगी।
मौके पर ठेकेदार द्वारा dpr डेली प्रोग्रेस रिपोर्ट और mpr मंथली प्रोग्रेस रिपोर्ट बनाई जाती है जिसमे उस दौरान किया गए निर्माण कार्य की जिक्र होता है। मौके पर मौजूद लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर भी इसमें अपने हस्ताक्षर करते है जिसके आधार पर ही ठेकेदार को बिल भुगतान अग्रिम किया जाता है। अब बड़ा सवाल ये है कि जब एंकर की लंबाई का खेल खेला जा रहा था उस वक्त विभाग ने आपत्ति क्यों दर्ज नही की एयर कार्य को होने दिया । क्या उसे उम्मीद थी कि ऊपरी कमाई में उसे भी हिस्सा मिलेगा ?
टेंडर आवंटन से पूर्व ठेकेदार का ट्रैक रिकॉर्ड देखा जाना जरूरी था कि कितनी साइट पर काम पूर्ण किया है और कितनी साइट पर अधूरा निर्माण छोड़ कर विवाद कोर्ट में चल रहा है। इसके लिए  इसी sipl की जोशीमठ बिष्णु प्रयाग की बीआरओ की साइट और टीएचडीसी की स्लोप प्रोटेक्शन साइट के साथ कंपनी के चल रहे निर्माण  कार्य पर नजर दौड़ानी जरूरी थी।
उत्तरकाशी जिला व्यापार मंडल के जिला अध्यक्ष सुभाष बडोनी ने बताया कि  शिव नगरी उत्तरकाशी में पूर्व में पूर्व की तरह स्थानीय लोगो और व्यापारियों के साथ नगर की सुरक्षा में कोताही करने वालो के खिलाफ़ सड़को पर आंदोलन सुरु किया जाएगा ।
लोक निर्माण विभाग के अधिशाषी अभियंता से फोन पर भी संपर्क नही हो सका जबकि विभाग के अवर अभियंता  रविन्द्र चौहान ने बताया कि घटिया और अधूरा  निर्माण के लिए ठेकेदार को चेतावनी दी गयी है, वन भूमि के चलते काम सुरु करने में देरी जरूर हुई किन्तु आगामी वरसात से पूर्व उपचार पूर्ण कर लिया जाएगा।
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