कोर्ट का कीमती समय न हो बर्बाद – हर जरूरतमन्द को मिले न्याय – विडियो कॉन्फ्रेंसिंग से गवाही एक सार्थक पहल

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भारतीय स्वतंत्रता दिवस की 75वीं पर वर्षगॉठ पर राज्य के 05 पर्वतीय जिलों-चमोली, चम्पावत, पिथौरागढ़, टिहरी गढ़वाल एवं उत्तरकाशी हेतु उपरोक्त सचल न्यायालय वाहन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। जिन्हें माननीय श्री राघवेन्द्र सिंह चौहान, मुख्य न्यायमूर्ति उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया गया।

      कई संवेदनशील वादों में पीड़ित व्यक्ति/साक्ष की सुरक्षा को खतरे होने अथवा सामाजिक लांछन के भय के कारण, पीड़ित/प्रधान साक्षी का साक्ष्य या तो अत्याधिक विलम्बित हो जाता है, या अभिलिखित होने से रह जाता है। इसका परिणाम न्यायालय की सुनवाई में अत्याधिक विलम्ब होता है, जिसके अग्रेतर प्रमाणस्वरूप वाद की अवधि बढ़ जाती है। कई बार विडम्बना यह होता है, कि सुदूर/दूरवर्ती स्थान से आये हुये साक्षी का साक्ष्य कतिपय कारणों से अभिलिखित नहीं हो पाता है, तथा उसे खाली हाथ और निराश लौटना पड़ता है, इस चिन्ता के साथ कि उसे फिर आना पड़ेगा।

      इन परिदृश्यों को सम्बोधित करने के लिये माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड नैनीताल द्वारा साक्ष्य अभिलिखित करने, तथा अन्य अपरिहार्य सुनवाईयों को विडियों क्रान्फ्रेसिंग के माध्यम से क्रियान्वित करने हेतु एक अभिनव एंव अनुपम व्यवस्था को धरातल पर उतारने की पहल की गई है।

      इस व्यवस्था के अन्तर्गत साक्ष्य अभिलिखित करने तथा अपरिहार्य अथवा अति महत्वपूर्ण सुनवाई को विडियो क्रान्फ्रेसिंग के माध्यम से सम्पादित करने हेतु मा0 उच्च न्यायालय द्वारा उत्तराखण्ड राज्य प्रशासन की सहायता से अथवा सचल न्यायालय इकाईयों की योजना को प्रारम्भ किया जा रहा है, जिनका संचालन संचल इन्टरनेट/विडियो क्रान्फ्रेसिंग वाहन से किया जायेगा।

      इस योजना के प्रारम्भिक चरणों में ऐसे पीड़ित अथवा साक्षी का साक्ष्य सचल न्यायालय ईकाई के माध्यम से लिया जा सकेगा जो बालक/बालिका या महिला है, या चिकित्सक अथवा अन्वेषण अधिकारी है।

’’एक समाज का प्रथम कर्तव्य अपने सदस्यों को सदैव समय पर तथा सुविधाजनक स्थान पर न्याय सुनिश्चित किया जाता हैं, ताकि न्यायिक व्यवस्था पर आस्था अखण्डित रहे’’।

         माननीय श्री राघवेन्द्र सिंह चौहान, मुख्य न्यायमूर्ति उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड      वादकारियों एवम् वाद से सम्बन्धित व्यक्तियों के हित में न्यायपालिका तथा प्रशासन द्वारा अनेक कदम उठाये जा रहे है। जैसे-जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, जीवन तथा शासन के हर पहलू में प्रवेश कर रही है, न्याय वितरण प्रणाली, अधिक प्रभावी तथा वादकारी मित्र/सहयोगी संगठन बनने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी संचालित प्रणाली की मूल आधारशिला इन्टरनैट कनेक्टिविटी है।

      covid-19 के परिदृश्य में कार्यस्थलों में सूचना प्रौद्योगिकी तथा उसके परिणामस्वरूप, अबाधित इन्टरनैट कनेक्टिविटी (सयोंजकता) की मांग नई ऊँचाईयों तक पहॅुच गयी है।

      उत्तराखण्ड राज्य को अपनी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भौतिक तथा इन्टरनैट, दोनों ही की संयोजकता की गम्भीर समस्या का सामना करना पड़ता है। निवास की सदूरता तथा उत्तराखण्ड के दूरस्थ तथा दुर्गम भूदृश्य में परिवहन सुविधाओं का वास्तविक अभाव, वादकारियों एवं वाद से सम्बन्धित व्यक्तियों (विशेषतः महिलायें एवं बच्चे) के समक्ष एक विशाल चुनौती प्रस्तुत करती है, जो कष्टदायी दुर्ग) के समक्ष एक विशाल चुनौती प्रस्तुत करती है, जो कष्टदायी दुर्गमताओं का सामना करे बिना, न्यायालय की कार्यवाही में प्रतिभाग कर पाने में समर्थ नहीं होते है।

   न्यायालयों की उचित आधारभूत संरचना का आभाव लोक अभियोजकों, न्यायिक अधिकारियों तथा दक्ष अधिवक्ताओं की अपर्याप्त संख्या आदि परिस्थितियॉ, दूरस्थ स्थानों में निवास करने वाले वादकारियों अथवा न्यायिक सहायता के पात्रों को न्यायालय तक लम्बी यात्राएं करने, तथा ऐसी यात्राओं में अनगिनत दुर्गमताओं का सामना करने के लिए विवश करती है। इन परिस्थितियों का सर्वाधिक पीड़ित वर्ग महिलायें एवं बच्चे होते है, जो या तो, अपराधों के पीड़ित होते है अथवा मामलों के प्रधान साक्षी। इसके अतिरिक्त, न्यायालयों का बहुमूल्य समय ऐसे चिकित्सीय तथा औपचारिक साक्षीगणों का साक्ष्य अभिलिखित करने में व्यर्थ चला जाता है, जिनका बार-बार एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता रहता है।

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