देहरादून। अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस न केवल जैव विविधता का जश्न मनाने, बल्कि लोगों और प्रकृति के बीच गहरे संबंध को पोषित करने और प्रतिबिंबित करने का भी दिन है। चल रहे कोविड-19 महामारी को देखते हुए, महानिदेशक ए.एस. रावत, भा.व.से. की अध्यक्षता में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (भा.वा.अ.शि.प.) ने वर्चुअल माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया। जिसमें पूरे भारत से लगभग 200 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
महानिदेशक, भा.वा.अ.शि.प. ने अपनी परिचयात्मक टिप्पणी में जैव विविधता पर मानवजनित गतिविधि और जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव पर जोर दिया और संरक्षण के लिए स्थायी प्रबंधन को रेखांकित किया। तत्पश्चात, डॉ. एस.पी. सिंह, पूर्व कुलपति, एच.एन.बी.गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अपने मुख्य व्याख्यान में हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के महत्व पर जोर दिया और जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर प्रकाश डाला। वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान, कोयंबटूर के निदेशक डॉ. कुन्हिकन्नन ने पारिस्थितिक तंत्र और सामाजिक स्थिरता के बीच बढ़ते लिंक पर जोर देने के लिए साइलेंट वैली पर साक्ष्य के साथ पश्चिमी घाट की जैव विविधता की समृद्धि पर प्रकाश डाला। निदेशक ने अनुसंधान के उन प्रमुख क्षेत्रों पर भी प्रकाश डाला, जिन पर जैव विविधता की रक्षा के लिए तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। डॉ. संजय सिंह, वैज्ञानिक, जैव विविधता एवं जलवायु परिवर्तन प्रभाग, भा.वा.अ.शि.प. ने मध्य भारत की जैव विविधता पर व्याख्यान प्रस्तुत किया और संरक्षण के लिए जन भागीदारी के महत्व पर जोर दिया। इस समारोह में भा.वा.अ.शि.प. संस्थानों और मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों, वैज्ञानिकों, तकनीकी अधिकारियों और परियोजना अध्येताओं ने भाग लिया। कार्यक्रम का समन्वय सुधीर कुमार, उ.म.नि. (विस्तार) द्वारा किया गया और डॉ. गीता जोशी, स.म.नि. (मी.व वि.) द्वारा संचालित किया गया।