मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति ने अपना पक्ष रखा

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देहरादून। मूल निवास पर कांग्रेस नेता और विधायक तिलकराज बेहड़ के बयान के बाद मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति ने अपना पक्ष रखा है। मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि सवाल मुख्यतः इस बात पर है कि जिन लोगों को सरकार ने, 1950 के बाद, तराई में बसाया था, उनके अधिकारों का क्या होगा? हम आन्दोलनकारी समन्वय समिति की तरफ से विधायक के मार्फ़त तराई क्षेत्र में, निवास करने वाले उन सभी भाई बहनों को आश्वस्त करना चाहते हैं कि जिन लोगों को भारत सरकार ने विशेष प्रावधान के तहत, 1950 के बाद राज्य में बसाया है। हमारी नजर में वो सब राज्य के मूल निवासी हैं। यह आन्दोलन उनके खिलाफ नहीं है, यह आन्दोलन भारत के संविधान द्वारा आपको दिए गए अधिकारों का हनन करने का प्रयास भी नहीं है।
विदित हो कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद द्वारा 8 अगस्त 1950 एवं 6 सितम्बर 1950 को भारत में अधिवासन के संबंध में जारी उद्घोषणा (नोटिफिकेशन), के प्रावधानों के अनुसार, 1950, जो भी व्यक्ति/परिवार, जिस भी स्थान पर निवास कर रहा था वो वहां का मूल निवासी है अर्थात आज के उत्तराखण्ड नामक भू-भाग में, जो भी व्यक्ति 6 सितम्बर 1950 के दिन, उत्तराखंड राज्य की सीमा में निवास करता था, वह उत्तराखण्ड का मूल निवासी है। अगर मूल निवास कानून बन गया और राज्य का अपना भू कानून बना तो निश्चित ही, तराई क्षेत्र के किसानों की जमीनें भी बचेंगी क्योंकि भू माफिया की नजर, छोटे और सीमान्त किसानों की जमीनों पर भी रहती है। हम तराई में बसे, उन सभी भाई बहनों से निवेदन करते हैं कि जाति धर्म के बंधनों को तोड़कर, राज्य के अन्य मूल निवासियों के साथ, भाईचारा निभाते हुए, मूल निवासियों के अस्तित्व और पहचान से जुड़े इस महत्त्वपूर्ण आन्दोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभायें।

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