पहाड़ी बैंड -संस्कृति संरक्षण के साथ मनोरंजन भी
गिरीश गैरोला
पहाड़ी संस्कृति के संरक्षण में लोकल बैंड की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो गयी है। बदलते परिवेश में समाज की एकरूपता का पूरा ताना बाना अब छिन्न भिन्न हो चुका है जिसे फिर से पटरी पर लाना आसान तो नही किन्तु नामुमकिन भी नही है।
समाज को कई वर्गों को आपस मे जोड़कर रखने वाले बाध्य यंत्र को बजाने वाले इसे घाटे का सौदा मानकर छोड़ चुके है वही ढोल वादन पर किसी वर्ग विशेष का अधिकार छोड़ अन्य , संस्कृति के कलाकार भी धीरे धीरे इससे जुड़ने लगे है। बाजगी से बैंड तक के सफर में भले ही काफी गंगा बह गई हो किन्तु अभी बहुत देर नही हुई है। जरूरत है इन्हें कलाकार जैसा सम्मान देने की।
आओ इसे बचाने में अपनी भूमिका निभाएं।