⚡ “धैर्य जवाब दे रहा है… अब गुरिल्ला सड़क पर उतरेंगे!” — टिहरी गढ़वाल में भड़का SSB गुरिल्ला संगठन
🚨 कितिनगर में 20 नवंबर को बुलाई गई आपात बैठक, सरकार से फिर उठी न्याय की पुकार!
टिहरी गढ़वाल | उत्तराखंड के SSB गुरिल्ला संगठन में नाराज़गी उबाल पर है।
आज जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, संगठन ने 20 नवंबर 2025 को कितिनगर के भोलू भरदारी पार्क में एक आपातकालीन बैठक बुलाने का फैसला लिया है।
बैठक का उद्देश्य साफ है — सरकार से टूटे वादों का जवाब मांगना!

💥 “दो साल से इंतज़ार, पर कार्रवाई नहीं!”
गुरिल्लाओं ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से नाराज़गी जताते हुए कहा कि
“मुख्यमंत्री ने 20 दिसंबर 2023 को 18 सचिवों के साथ गुरिल्ला हित में बैठक की थी, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ।”
संगठन का कहना है कि गुरिल्ला समुदाय की आवाज़ बार-बार उठाई गई,
फिर भी “फाइलें दफ्तरों में धूल खा रही हैं।”
😡 “हमसे और कितना छल करेंगे?” — गुरिल्लाओं का सवाल सरकार से
प्रेस विज्ञप्ति में गुरिल्लाओं ने लिखा है —
“हमने 17 और 18 फरवरी 2025 को मुख्यमंत्री आवास और सचिवालय का घेराव किया,
लेकिन न कोई जवाब मिला, न समाधान। अब सवाल यह है कि सरकार और कितनी देर तक हमें टालती रहेगी?”
उन्होंने मुख्यमंत्री पर सीधा सवाल दागा —
“महोदय, अब हम गुरिल्लाओं से और कितना छल करेंगे?”
🔥 “धैर्य जवाब दे रहा है, अब सड़क ही रास्ता है”
गुरिल्ला संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही तीन सूत्रीय मांगों पर निर्णय नहीं हुआ,
तो वे “फिर से सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे।”
बैठक में प्रमुख पदाधिकारियों —
जिलाध्यक्ष दिनेश प्रसाद गैरोला, मीडिया प्रभारी अनिल प्रसाद भट्ट,
ब्लॉक अध्यक्ष हिम्मत सिंह मेहर, जवाहर सिंह बिष्ट,
सलाहकार दयाल सिंह सजवाण, सचिव सुनील पुंडोरा,
महिला मोर्चा अध्यक्ष लक्ष्मी भट्ट, महामंत्री मुरारी सिंह असवाल सहित
कई गुरिल्ला साथी मौजूद रहेंगे।
⚔️ “अब फैसला चाहिए — सम्मान या संघर्ष!”
गुरिल्लाओं ने कहा कि यह बैठक केवल चर्चा नहीं, बल्कि निर्णय का मंच होगी।
“हमने वर्षों तक सीमाओं पर सेवा दी, अब अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
अगर सरकार ने नहीं सुना — तो देवभूमि की धरती पर आंदोलन की गूंज फिर से उठेगी।”
🕯️ देवभूमि में फिर से संघर्ष की आहट!
टिहरी की घाटियों में अब SSB गुरिल्लाओं का सब्र टूटने की दस्तक सुनाई दे रही है।
क्या सरकार उनकी मांगों पर ठोस कदम उठाएगी या फिर देवभूमि एक और आंदोलन की गवाह बनेगी?
