देश की सीमा पर शहीद होने वाले जवानों को सम्मान देने के लिए मरने का क्यों होता है इंतजार।
जीते जी क्यों नही मिलता सैनिकों को सम्मान।
ट्रेन में बस अड्डे पर नही मिलती जवानों को जगह।
गिरीश गैरोला
जवान बॉर्डर पर दुश्मन की गोली का शिकार हो जाय अथवा आतंकी घटना का शिकार हो जाय तो पूरा देश एकजुट होकर सैनिकों औए सेना के लिए सम्मान प्रकट करता है किंतु क्या जीते जी सैनिक को वो सम्मान मिलता है जिसका वो हकदार है।
शहीद के लिए कैंडल मार्च से आगे बढ़कर सेना के लिये सोच बदलने की जरूरत है । सौनिक की शहादत के बाद देश वासियों की भीड़ उमड़ती है तो एक छण के लिए खयाल आता है कि मौत तो सबको एक दिन आनी ही है, जो एक कड़वा सच है किंतु ऐसी मौत जिसपर पूरा देश आपके साथ खड़ा होकर आंसू बहाता है साथ ही इस मौत पर गर्व भी करता है ।
किंतु इतना ही पर्याप्त नही है, एक और कदम आगे बढकर सेना और सैनिकों के लिए सोच बदलने की जरूरत है । देश मे ऐसी नीति बननी चाहिए कि हर नागरिक को न्यूनतम कुछ वर्ष सेना के लिए देना जरूरी हो जरूरी नही बॉर्डर पर ही खड़ा हुआ जाय व्यक्ति की काबलियत के अनुसार कुछ भी कार्य सेना के लिए किया जा सकता है, ये सब इसलिए कि हर नागरिक समझ सके को देश की सरहदों की हिफाजत में लगे जवानों की दिनचर्या कैसी होती है।