टिहरी बांध का दम घोंट रही दैवी आपदा की सिल्ट।

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टिहरी बांध परियोजना का दम घोट रही भागीरथी की सिल्ट ।

गिरीश गैरोला

छोटे बांधो के जलाशयों में जमा सिल्ट देश की महत्वपूर्ण टिहरी बांध परियोजना के लिए बड़ा खतरा साबित हो रही है। दैवी आपदा से भागीरथी की अपस्ट्रीम में बडी तादाद में जमा मलवा रन ऑफ द रिवर बांध परियोजनाओ में  फ्लशिंग से बहकर अंत मे टिहरी झील में ही जमा होकर इसकी उम्र कम करने का कारण बन रहा है। झील में जमा इस सिल्ट को टिहरी जलाशय में पहुँचने से पूर्व ही यदि नही उठाया गया तो झील के आसपास की एक बडी सभ्यता के लिए कभी भी आत्मघाती कदम साबित हो सकता है। समय – समय पर इसे खाली कर न सर्फ स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलेगा बल्कि बाढ़ की स्थिति में नदी के आसपास की बस्तियां भी सुरक्षित रहेगी और सरकार को भी राजस्व मिलेगा। पर्यावरण की दृष्टि से कुछ खतरों को उसी अंदाज में नजर अंदाज करना होगा जैसे शराब स्वास्थ्य के लिए हानि कारक होते हुए भी पहाड़ो में इनकी दुकानों और खरीददार दोनों की तादाद में कोई कमी नही हो रही है।

https://youtu.be/MIIdyFqiW9U

वीडियो में दिख रहा  यह दृश्य किसी देवी आपदा का नहीं है बल्कि जल विद्युत उत्पादन के बैराज की फ्लशिंग  है। फ्लशिंग से बैराज में अधिक मात्रा में जमी सिल्ट को डाउन स्ट्रीम में तेजी से बहा दिया जाता है।

मानसून काल मे वर्षा के जल के साथ नदी में सिल्ट की मात्रा बढ़ जाती है। बैराज के नीचे भारी मात्रा में सिल्ट जमा होने से पानी केवल ऊपरी सतह पर ही होता है जिसके चलते विधुत उत्पादन परियोजना में हेड लॉस होने लगता है। फ्लशिंग के बाद सिल्ट नीचे की तरफ बह जाती है और कुछ समय के लिए पानी जमा करने के लिए पर्याप्त स्थान मिल जाता है। किंतु फ्लशिंग के दौरान उत्पादन ठप्प हो जाता है।  विगत वर्षों में भागीरथी और अन्य सहायक नदियों में आई बाढ़ के चलते मलवा नदी की अपस्ट्रीम में जमा है जो बहते पानी के साथ बहते हुए बैराज में जमा होती रहती है।
उत्तरकाशी स्थित मनेरी भाली परियोजना प्रथम  में शनिवार दोपहर तीन बजे से रात 9 बजे तक तिलोथ विधुत ग्रह में उत्पादन बंद कर फ्लशिंग की गई। जब यही मलवा जोशियाड़ा झील में जमा हो गया तो रविवार को सुबह 10 बजे से साम 3 बजे तक यहाँ भी विधुत उत्पादन बंद कर फ्लशिंग करनी पड़ी। वर्षा काल मे गंगा नदी में पर्याप्त पानी उपलब्ध होने से 90 मेगावाट की मनेरी प्रथम से रोज 2.09 मिलियन यूनिट प्रतिदिन और 304 मेगावाट की स्टेज दो  धरासु विधुत ग्रह से 7.2मिलियन यूनिट उत्पादन प्रतिदिन हो रहा है।
इस तरह सिल्ट हटाने के लिए की गई फ्लशिंग से करीब ढाई मिलियन यूनिट उत्पादन की हानि हुई है। अपस्ट्रीम में जमा मलवे के पानी के साथ नीचे आने से बार बार फ्लशिंग की नौबत आ रही है। ऊपरी इलाको में रन ऑफ द रिवर बांध के बैराज में फ्लशिंग कर सिल्ट हटाकर तात्कालिक उपाय तो कर लिए जाते है किंतु फ्लशिंग से बहकर जब यही सिल्ट अगले चरण में टिहरी झील में पहुचती है तो इसमें फ्लशिंग की कोई गुन्जाईस ही नही है। अगर इसी दर से आपदा का मलवा सिल्ट के रूप में अंत मे  टिहरी झील की तलहटी में जमा होता रहा तो 100 वर्ष की बजाय 25 वर्षो में ही बांध सिल्ट से भर जाएगा और यहाँ पर सिर्फ एक रेत का महल ही खड़ा दिखाई देगा जिसमे डेल्टा बनाती हुई गंगा की पतली धार कही रेत से ऊपर यो कही रेत के अंदर गुम होती दिखाई देगी।
अब सवाल ये है कि सिल्ट को यहाँ तक पहुँचने से पहले ही उठाने की अनुमति दे दी जाय तो टिहरी बांध की उम्र कुछ वर्ष बढ़ सकती है। आपदा के मलवे से भागीरथी नदी का रिवर बेड कई स्थानों पर उठ चुका है जो बाढ़ के दौरान न सिर्फ नदी पर बने पुलों के लिए खतरनाक है बल्कि नदी की धारा अपने किनारों को तोड़कर आबादी वाले इलाकों में भी तबाही ला सकती है। पर्यवारण हो अथवा खनन दोनों स्थिति में पहाड़ी इलाको में और मैदानी इलाकों में एक जैसे मानक तय करना एक सभ्यता के लिए खतरनाक हो सकता है। टिहरी झील निर्माण में एक संस्कृति और परंपराओं की बलि दी गयी अब इसके बाद फिर से स्थिति दुहराने की अवधि को लंबा करने के लिए कुछ तो करना ही होगा।
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