भूमि क्षरण की समस्या प्रमुख चिंता का विषय बनती जा रहीः रावत

Share Now

देहरादून। वन अनुसंधान संस्थान देहरादून के वन पारिस्थितिकी एवं जलवायु परिवर्तन प्रभाग तथा पर्यावरण सूचना प्रणाली के सौजन्य से संस्थान में मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के लिए विश्व दिवस मनाया गया। इस अवसर पर इको-रिस्टोरेशन एंड रिहैबिलिटेशन शीर्षक विषय पर भारत के विभिन्न कॉलेज,  विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए एक वेबिनार सह ऑनलाइन भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. विजेंदर पंवार, समन्वयक एनविस-एफआरआई के स्वागत भाषण से किया गया। अरुण सिंह रावत, महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) जो वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के निदेशक भी हैं मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित रहे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि वैश्विक स्तर पर 23 प्रतिशत भूमि अब उपजाऊ नहीं रही है, उसमें से 75 प्रतिशत भूमि को मुख्य रूप से कृषि के लिए बदल दिया गया है।
भूमि के उपयोग में जो यह परिवर्तन हो रहा है वह मानव इतिहास में किसी भी समय की तुलना में सबसे तेज गति से हो रहा परिवर्तन है और इसमें पिछले 50 वर्षों में अत्यधिक तेजी आई है। उन्होंने और कहा कि मरुस्थलीकरण और सूखे से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए दुनिया भर में कई तरह पहल की जा रही  हैं। नवीनतम अनुमानों के अनुसार, हमारे देश का 96.40 मिलियन हेक्टेयर (कुल भौगोलिक क्षेत्र का 29.32ः) क्षेत्र भूमि क्षरण के दौर से गुजर रहा है, जिसमें से 82.64 मिलियन हेक्टेयर शुष्क भूमि के अंतर्गत आता है। भारत में भूमि क्षरण की समस्या एक प्रमुख चिंता का विषय बनता जा रहा है,  भारत ने यूएनसीसीडी के एक हस्ताक्षरकर्ता के रूप में 2030 तक भूमि क्षरण को कम करने की प्रतिबद्धता दर्शाया है। वन अनुसंधान संस्थान ने देश के विभिन्न स्थानों में स्थित अपने सहयोगी संस्थानों के साथ मिलकर इन समस्याओं का जैसे कि कोयला खदान के ढेर, चूना पत्थर की खदानें, नमक प्रभावित मिट्टी, जलभराव वाले क्षेत्रों, मरुभूमि वाले क्षेत्रों के पुनर्जीवित करने हेतु उपयुक्त मॉडल विकसित करके हल निकालने की कोशिश की है। इन शोध निष्कर्षों को डायरेक्ट टू कंज्यूमर योजना के माध्यम से उपयोगकर्ताओं तक भी वितरित किया गया है, इसके अतिरिक्त उपयोगकर्ताओं को व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया गया है। कार्यक्रम में एचएफआरआई शिमला के वैज्ञानिक डॉ. वनीत जिष्टू ने उत्तर-पश्चिम हिमालय के ठंडे रेगिस्तानों में मरुस्थलीकरण के समस्या का समाधान की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।  इस अवसर पर आयोजित ऑनलाइन भाषण प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार क्रमाशरू प्रथम पुरस्कार अपूर्वा, म0,स0सी0,  सनराईज अकेडमी आॅफ मेनेजमेंट, द्वितीय पुरस्कार मानसी सिंगल, एम0एस0सी0 एनवायरमेंट एण्ड मैनेजमेंट, वन अनुसंधान संस्थान सम विश्वविद्यालय व तृतीय पुरस्कार सुरभी शर्मा, एम0एस0सी0 फाॅरेस्ट्री, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून को प्रदान किया गया। संस्थान के वन पारिस्थितिकी एवं जलवायु परिवर्तन प्रभाग के एन. बाला प्रमुख, डॉ. तारा चंद, डॉ. परमानंद कुमार और डॉ. अभिषेक वर्मा आदि वैज्ञानिकों ने ऑनलाइन भाषण प्रतियोगिता के निर्णायक रहें। कार्यक्रम में सभी प्रभागों के प्रमुखों, वैज्ञानिकों, तकनीकी अधिकारियों, छात्रों और अन्य हितधारकों ने भी भाग लिया। विजेताओं को बधाई देने और अतिथि वक्ताओं को विशेष धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया। प्रथम पुरस्कार अपूर्वा, एम0एस0सी0 सनराईज अकेडमी आॅफ मेनेजमेंट, द्वितीय पुरस्कार मानसी सिंगल,एम0एस0सी0 एनवायरमेंट एण्ड मैनेजमेंट, वन अनुसंधान संस्थान सम विश्वविद्यालय व तृतीय पुरस्कार सुरभी शर्मा, एम0एस0सी0 फाॅरेस्ट्री, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!