एक थी टिहरी जिसका है ,आज जन्म दिन ।

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आज 28 दिसम्बर (1815)को पुरानी टिहरी का स्थापना दिवस है,आज के ही दिन 1815 में तत्कालीन टिहरी रियासत के महाराजा बोलन्दा बदरी के नाम से सुप्रसिद्ध टिहरी नरेश सुदर्शन शाह ने गोरखाओं द्वारा हमले के दौरान अंग्रेजो से मांगी गई सहायता के एवज में अलकनन्दा पार यानी पौड़ी,सलाण को छोड़कर श्रीनगर गढ़वाल से राजधानी भागीरथी,भिलंगना के संगम तट त्रिहरी, गणेश प्रयाग यानी टिहरी में बसाई थी,

चन्द्र शेखर पैन्यूली

कहा जाता है कि पूर्व में यहाँ धुनारो की बस्ती थी।आज जलमग्न हो चुकी टिहरी ने तकरीबन 130 वर्ष राजाओं का शासन देखा तो आजादी के बाद से 2005 में जलमग्न होने तक विभिन्न आंदोलनों का गवाह रहा टिहरी शहर,टिहरी में1968 से बांध बनने की प्रक्रिया शुरू हुई तो धीरे धीरे बांध के विरोध में आवाजें भी उठती रही,80 और 90 के दशक में टिहरी बांध विरोधी आंदोलन बड़े स्तर पर चला लेकिन उतनी ही तेजी से सरकारों ने यहां से लोगों को विस्थापित करने के कार्य भी किये,नतीजन धीरे धीरे टिहरी और आसपास के गॉवों के लोग बसाए जाने लगे लोगों ने भारी मन से अपने पैतृक घर ,सम्पति छोड़ी। मैंने व्यक्तिगत रूप से आभास किया कि यदि टिहरी शहर न डूबता ,आसपास के गॉव बांध के लिए न डुबाये जाते तो टिहरी जिले से बहुत कम पलायन होता,मैने पाया कि टिहरी बांध के कारण टिहरी से भारी पलायन हुआ,उसका प्रमुख कारण टिहरी बांध विस्थापितों ने स्वयं विस्थापित होने के बाद अपने मूल गॉव के आसपास के गॉव में रहने वाले बांध प्रभावित लोगो अपने रिश्तेदारों को भी अपने साथ बस जाने को कहना भी है,साथ ही मैंने ये भी आभास किया कि जहाँ जहाँ टिहरी वाले गए वहाँ वहाँ विकास भी होता गया,विस्थापितों के बसने से पूर्व जिस जमीन को कोई पूछने वाला न था उसकी कीमत आज आसमान छू रही है,उदाहरण के लिए भानियावाला,अठुरवाला, बंजारावाला,पशुलोक,पथरी,आदि जगह।जैसे जैसे इन जगहों विस्थापित रहने लगे,गॉव बसे वैसे वैसे इन जगहों की वैल्यू बहुत बढ़ती गई,भानियावाला में शिफ्ट किये गए कई टिहरी वासियों को तो वहाँ से भी एयरपोर्ट निर्माण के नाम पर विस्थापित किया गया,टिहरी के लोगों के विस्थापन हो जाने से इन तमाम जगहों का तेजी से विकास हुआ।टिहरी बांध से विस्थापितों में जन्मभूमि छोड़ने का गम है,लेकिन असली सजा टिहरी बांध से पिछड़े सर्वाधिक प्रभावित प्रतापनगर क्षेत्र के लोगों को मिली,जिनके आने जाने के रास्ते डूबे,अपने सर्वाधिक नाते,रिश्तेदार अपने से दूर हो गए,और पूरे क्षेत्र को कालापानी जैसी सजा हुई है।आज हालात ये है कि ब्लॉक मुख्यालय प्रतापनगर के लिए ऋषिकेश,देहरादून, उत्तरकाशी,नई टिहरी से कोई सीधी बस सेवा नही है जबकि पूर्व में श्रीनगर,ऋषिकेश आदि जगहों से बस रात्रि विश्राम के लिए प्रतापनगर में रुकती थी,न ही ब्लॉक प्रतापनगर में कोई रोडवेज बस सेवा है।आज प्रतापनगर के स्कूलों में अध्यापकों की कमी है,स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल है,एक्सरे,अल्ट्रासाउंड मशीनें तक नही है डॉक्टरों के पद बड़ी संख्या में रिक्त पड़े हैं।कुल मिलाकर टिहरी बांध से प्रतापनगरवासियों को खासा नुकसान हुआ,इस बीच सुखद खबर ये है कि 2006 से निर्माणाधीन डोबरा चांठी भारी वाहन पुल जल्द कुछ महीनों में यातायात के लिए खुल जायेगा।इसी तरह जाखणीधार, भिलंगना,थौलधार ब्लॉकों के लोग भी टिहरी बांध से पिछड़े हैं।प्रतापनगर क्षेत्र की विकटता तो बहुत है,आज जलमग्न टिहरी की वर्षगांठ है तो इस अवसर पर टिहरी की आजादी और राजशाही के खिलाफ लड़े टिहरी जनक्रांति के नायक श्रीदेव सुमन जी को नमन करता हूँ,नागेन्द्र सकलानी,मोलू भरदारी को नमन करता हूं,परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी ,स्वामी रामतीर्थ जी सहित तमाम आजादी के सेनानियों को नमन करता हूँ,टिहरी पूरे गढ़वाल का एक समृद्धशाली, सुव्यवस्थित शहर था,जहाँ पर हर जाति,धर्म के लोग बड़े भाईचारे के साथ मिलजुलकर रहते थे,टिहरी के साथ साथ अगलबगल के गॉवों में बड़ी रौनक और समृद्ता थी,अच्छी खासी खेती बाड़ी थी,दोबाटा,मालदेवल,सिराईं खाण्ड,कण्डल आदि अनेको गॉवों में बेहद रौनक हुआ करती थी,जो आज जलमग्न है,टिहरी की सुप्रसिद्ध सिंगोरी को आज सभी बहुत याद करते हैं, उसी तरह सुहागिनों की प्रिय टिहरी नथ को भी सभी बहुत याद करते हैं, टिहरी के घण्टाघर,बद्रीनाथ मन्दिर,प्रताप इंटर कॉलेज,स्वामी रामतीर्थ परिसर गढ़वाल विश्वविद्यालय ,सुमन चौक,बद्रीनाथ मन्दिर सहित अनेकों मोहल्लों ,मठ,मंदिरों,जो कि आज डूब चुके है,इन सब जगहों को लोग सदैव याद करते हैं।टिहरी के लोगों ने देश की ऊर्जा के नाम पर अपने गॉव,घर,जल,जंगल,जमीन सबकी आहुति दी,आज टिहरी होता तो पूरे उत्तराखंड का एक बड़ा व्यापारिक,सांस्कृतिक, राजनीतिक केंद्रबिंदु होता,लेकिन समय को शायद यही मंजूर था कि टिहरी आज डूब चुका है,पर यादें सभी के जेहन में ताजा है।सुदर्शन शाह,प्रताप शाह,भवानी शाह,कीर्ति शाह,नरेन्द्र शाह,मानवेन्द्र शाह जैसे राजाओं की कर्मस्थली रही पुरानी टिहरी आज अतीत के पन्नो में सिमट गई है लेकिन इसका इतिहास बड़ा स्वर्णिम है,वहीं टिहरी के बड़े बड़े महान क्रांतिकारियों, राजनीतिज्ञों की मुख्य केंद्र स्थली रही जलमग्न टिहरी आज उन वीरों के महान कार्यों की याद दिलाती है।आज भले ही टिहरी झील ने सभी टिहरी वालों को जगह-जगह जाने को मजबूर किया हो लेकिन टिहरी का निवासी जहाँ भी रहता है वहाँ पुरानी टिहरी को जरूर याद करता होगा,टिहरी थी ही ऐसी मोह नगरी कि जो यहाँ आता था,यहीं का होकर रह जाता था।आज टिहरी के स्थापना दिवस पर बदरीनाथ जी की स्थली,माँ राज राजेश्वरजी और सिदेश्वर महादेव की पवित्र भूमि टिहरी को नमन करते हुए टिहरी के सभी विस्थापित भाई बहनों को नमस्कार करता हूँ, टिहरी भले ही सब डूब चुकी हो लेकिन पुरानी टिहरी सदैव हम सबकी यादों में जिंदा रहेगी।
जय बद्री विशाल लाल की,जय माँ राज राजेश्वरजी की।

चन्द्रशेखर पैन्यूली

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