जाने भाईदूज, माता यमुना और देव यमराज के पौराणिक मान्यताओं के बारे में
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज।
पाहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते।।
हमारे वैज्ञानिक सनातन शास्त्रों के अनुसार यम द्वितीया जिसे हम भैयादूज के रूप में मनाते हैं, वह मूल रूप से मृत्यु के देवता यमराज के पूजन का दिन है। कार्तिक शुक्ल द्वितीय, दीपोत्सव का समापन दिवस है। भाई अपने बहनों के आमंत्रण उर उनके घर जाकर उनसे तिलक कराते हैं और बहनें भाई के कल्याण और वृद्धि के मांगलिक विधान करती हैं। अपने भाइयों के सर्वांगीण कल्याण, दीर्घ जीवन एवं उत्कर्ष हेतु तथा स्वयं के सौभाग्य के लिए बहनों द्वारा इस दिन अक्षत कुंकुमादि से अष्टदल कमल बनाकर इस व्रत का संकल्प कर मृत्यु के देवता यमराज की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
रुचिता उपाध्याय
रुचिता उपाध्याय ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने जाते हैं इसीलिए यमुना तट पर भाई-बहन का समवेत भोजन कल्याणकारी माना जाता है।
जाने इस पर्व के पौराणिक कथा को:
” देवता सूर्य और संज्ञा की पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना रूपी दो संताने थी। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उसे ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहां से चली गई। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव न था, किंतु यम और यमुना में बहुत प्रेम था। यमुना अपने भाई यमराज के यहां प्रायः जाती और उनके सुख-दुख की बातें पूछा करती। यमुना यमराज को अपने घर पर आने के लिए कहती, किंतु व्यस्तता तथा दायित्व बोझ के कारण वे उसके घर न जा पाते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीय को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक जा पहुंचे। बहन यमुना ने अपने सहोदर भाई को बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा भाल पर तिलक लगाया। यमराज अपनी बहन से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने यमुना को विधिव भेंट समर्पित की। जब वे वहां से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया। यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा- भैया! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहां आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया करेंगे। इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा उसे भेंट दें, उसकी सब अभिलाषाएं आप पूर्ण किया करें एवं उसे आपका भय न हो। यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तभी से बहन-भाई का यह त्योहार मनाया जाने लगा।”
धनतेरस से छठ पूजा तक चलने वाले दीपोत्सव-पर्व का वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय महत्व है, भैयादूज का मुख्य उद्देश्य है भाई-बहन का एक दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना और उनके मध्य सौमनस्य और सद्भावना रूपी प्रेम बनाए रखना है।