भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राष्ट्र की एकता और अखंडता के प्रतीक : अजेय

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भारतीय जनसंघ के संस्थापक और भारतीय जनता पार्टी के आदर्श श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 121 जयंती पर उन्हें भाजपा प्रदेश मुख्यालय में श्रद्धासुमन अर्पित किए गए । इस अवसर आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय जी प्रदेश उपाध्यक्ष अनिल गोयल समेत भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि दी।

इस अवसर पर प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय जी ने कहा कि ‘डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नमन करते हुए मैं कि वो एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने भारत के विकास में अहम भूमिका निभाई। देश की एकता के लिए उन्होंने योगदान दिया और उनके विचार करोड़ों लोगों को प्रेरित करते हैं। मुखर्जी के विचार आज भी लोगों को ताकत देते हैं। डॉक्टर मुखर्जी ने भारत की एकता और प्रगति के लिए अपना जीवन खपा दिया। उन्होंने एक असाधारण विद्वान के रूप में भी अपनी पहचान बनाई।
महामंत्री संगठन ने कहा कि 11 मई 1953 में मुखर्जी को बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर की यात्रा के दौरान उनको गिरफ्तार किया गया था। 23 जून 1953 को जेल में ही उनका निधन हो गया था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ही वो पहले शख्स थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 का विरोध किया था। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खिलाफ थे मुखर्जी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जा के खिलाफ थे और उन्होंने राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा बताते हुए अनुच्छेद 370 का पुरजोर विरोध किया था। संसद के भीतर और बाहर इसके खिलाफ कड़ी लड़ाई लड़ी। भारतीय जनसंघ का मकसद इसे तत्काल समाप्त करना था। मुखर्जी ने 26 जून 1952 को अपने लोकसभा भाषण में इस प्रावधान के खिलाफ आवाज उठाई। राज्य का अलग झंडा होने और प्रधानमंत्री के प्रवाधान पर मुखर्जी ने कहा था ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे।’  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने 2019 में इसको समाप्त कर दिया।  मुखर्जी 1943 से 1946 तक अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष भी रहे।
अजेय कुमार ने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म आज ही के दिन 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। बीए और लॉ की उपाधि अर्जित करने के बाद वे इंग्लैंड चले गए थे, जिसके बाद वे वहां से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे।
डॉ मुखर्जी 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। वे मानवता के उपासक व सिद्धांतवादी नेता भी थे। उन्होंने भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में बुलंदियों को छुआ। वे एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता के रूप में प्रेरणास्त्रोत माने जाते हैं।
इस अवसर पर कार्यालय सचिव कौस्तुभानंद जोशी, नीरू देवी, प्रदेश एसटी मोर्चे के महामंत्री राजवीर सिह राठौर, समेत भारी संख्या में पदाधिकारी उपस्थित थे।

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