•
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल मे देश के विविध नदी घाटियों में निवासरत तथा कार्यरत विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, पर्यावरणीय, सामाजिक कार्यकर्त्ता तथा घाटी के किसान, मजदूर, मछुआरे एकत्रित हुए हैं | जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की ओर से आयोजित दो दिवसीय संमेलन में देश की नदियों की आज की स्थिति के साथ नदी और नदी कछार में आयोजित और प्रस्तावित योजनाओं का, उनके असरों का जायजा लिया जाएगा तथा विविध विकल्पों में सी सही निरंतर और न्यायपूर्ण विकल्प की खोज भी चर्चा – विचार से आगे बढायी जाएगी |
अंकित तिवारी।
नदियों का पुनर्जीवन, संरक्षण, कछार सहित जल और जमीन तथा हरित आच्छादान का नियोजन आज की जल संकट तथा जलवायु परिवर्तन की स्थिति में कैसा होना चाहिए, इस पर संमेलन में चर्चा होगी तथा आगे की दिशा और रणनीति – संघर्ष और निर्माण की – सुनिश्चित की जाएगी |
संमेलन में पधार चुके हैं गंगा की घाटी से विश्वविख्यात, नदी और बांधों के अर्थशास्त्री डॉ. भरत झुनझुनवाला: जलवायु परिवर्तन के अंतराष्ट्रीय विशेषज्ञ और सलाहकार सौम्या दत्ता जी: पर्यावरणीय क़ानूनविद देबोदित्त सिन्हा: महाराष्ट्र की विविध नदियाँ और पाने पर अभ्यासक व संगठक सुनीति सु.र. और विवेकानंद माथने: ओरिसा की महानदी और जल, जंगल, जमीन पर कार्यरत पर्यावरणविद प्रफुल्ल सामंतरा, बंगाल से आये नदी बचाओ – जीवन बचाओ के विश्वजीत भाई: गुजरात की नदियाँ क्षेत्र के वरिष्ठ कार्यकर्त्ता बाबजी भाई, और अन्य साथी |
संमेलन के उद्घाटन सत्रमे डॉ.भरत झुनझुनवाला ने एक अर्थशास्त्रीके नाते बताया कि बांधोकी लाभ-हानि सही नहीं आंकी जाती है | अमरिकाने एक ‘सालमन’ मछलीके लिए बांध हटाया और कुल 1000 बांध हटाये | यहा गंगा के या नर्मदाके बांध हटाने के लिए भी लाखो लोगोंको मंजूर है करोडो रु.देना ! तो हम क्यों नहीं सशक्त रुपसे नदियोंको अविरल बहने देनेकी बात कहे? मै भी अलकनंदा के किनारे रहते,गंगा घाटीकी स्थिति देखकर सीख चुका हू |
डॉ. सौम्या दत्ताजी ने विकास, जलनियोजन और जलवायु परिवर्तनको जोडते हुए कहां कि भारत,बांगलादेश,नेपाल,पाकिस्तान,भूतान तक की आंतरराज्य परियोजनाओं की हकीकत बहुत गहरी है | दक्षिण क्षेत्रके सारे देश हिमालय,तीन सागर,मान्सून और संस्कृति से जुडे हुए है | हिमालय पहाड,तीन समुंदर,दक्षिण-पश्चिम मान्सून सब कुछ एकत्रित,एक व्यापक व्यवस्था के रुपमें देखकर,हमें सोचना होगा,आगेकी पीढीयोंतक ! आजकी स्थिति गंभीर समझकरहमे नदीघाटी को समझने के लिए बडे स्तरपर लोगोंके जीवन के साथ जोडना पडेगा,सिर्फ बांधोसे प्रभावित से नहीं | गंगा-ब्रम्हपुत्रा-मेघना का पोली-मिट्टी से पूरे बंगाल का डेल्टा बना है,उनका पूरा जीवन इसी के उपर निर्भर है | बांधो के प्रभावकी वजहसे पूरी दक्षिण बंगालके 5 करोड लोग जल रहे है |
मध्य प्रदेशमें जनतांत्रिक विकास नियोजनपर सक्रिय रहे शरदचंद्र बेहारजीने बताया कि बांधोकी लडाईको अलग स्तरपर ले जानेकी जरुरत है | नदी घाटी सभ्यतासेही विकसित हुई मानवजात ! अब अध्ययनोंसे पता चलता है कि इस सभ्यताको गलत मोड लेनेको रोकना जरुरी है ! उन्होंने याद किया कि नर्मदा के बांधोपर आंदोलन और सरकारने मिलकर किये पुनर्विचारसे सही निष्कर्ष और सिद्धांत निकला था कि पहले बूंदसे शुरू करे,छोटे जलग्रहण क्षेत्रसे बांधोकी जरुरत नहीं रहेगी | दूसरा सिद्धांत यही था कि ‘राष्ट्रीय’ के नामपर कोई विकास,स्थानीय लोगोंकी जरूरते और हकीकत नहीं भूल सकते | सही प्राथमिकताओंमे जीनेके लिए,खेली के लिए …इ.तय करे हम |
मध्य प्रदेश के नये जलकानून के मसौदेमे,उन्होने कहा कि प्रदूषण भी जलसंकटका बडा कारण है | इन मुद्दोपर हमने जाना कि न्यायालय भी सरकारका एक अंग है,वह उन्ही वर्गोका प्रतिनिधित्व करता है ! इसीलिए उसी न्यायपर लिकरपर भरोसा न करे ! जनआंदोलनोकी जरुरत समझे ! पर शासनको भी समझनेकी जरुरत है ! आज पूंजीवाद लोकतंत्रपर पूरे विश्वमें हावी है ! इसीलिए संविधान भी कुचला जा रहा है तो ‘’We,the People’’ याने जनता की लडत पूंजीवाद के खिलाफ होनी है ! लडनेवालोंने कानून बनाने में refrendum की मांग करे,यह जरुरी है | उसके बिना संशोधन भी नहीं हो ! इस दिशामेहमें शासन और जनता के बीचकी दूरी मिटानी होगी !
भूतपूर्व सांसद संदीप दीक्षितजीने आश्वासित किया कि हम राजनीतिमें फसकर कई बार सच्चाई का सामना नहीं भी कर सकते फिरभी जनजन,वैकल्पिक विकासवादीयोंके साथ संवादसे हम हस्तक्षेपके काबिल होते है ! संमेलनकी प्रस्तावनामे विमलभाई ने कहां कि शासन,जनता और राजनेता तीनो की सोच सामने रखकर भी हमें निरंतर विकासकी और बढने के लिए तैयार रहना होगा ! गंगा घाटी पर भारी पर्यटन, धार्मिक अतिवाद, और बड़ी परियोजनाओ का हमला है |
दूसरे सत्र में मेधा पाटकर, तथा मांगल्या पावरा, कमला यादव,वाहिद मन्सूरी, राजकुमार सिन्हा, मुन्नाभाई बर्मन, दादूलाल खूडापे, बाबू पटेल आदिने नर्मदाके अनुभवआधारित अपने वक्तव्य दिये | उनके अनुसार नर्मदा घाटीके पीढीयो पुराने लोगोंको संस्कृति और प्रकृतिको तो उजाड दिया लेकिन गुजरातने अडानी,अंबानीकी कंपनियोंको अधिक बख्शा और किसानही नहीं खेती-किसानी बरबाद हुई | लाभ-हानिमे सभी नुकसान-आजीविका के,जंगल और वनौपज के,नीचेवासकी नदी और मछलीके नहीं गिने गये | नहि आबादी का या आजीविका का नीति,कानून अनुसार संपूर्ण पुनर्वास भी हुआ |घाटीका पानी,जमीन लेकर उद्योगोकी जो मनमानी और रोजगार भी बांध और परियोजनाओंको कई सारे हितसंबंधी आगे धकलते हैं,कि बडे बांधोके लाभोंसे ललचाते हैं और कानून,नीति,पर्यावरणीय नियमोंका उल्लंघन होता रहा है | इसीलिए विकेंद्रित नियोजन होनेका आग्रह रखा गया |
मेधा पाटकरजी ने संमेलन के उद्देश्य के साथ दिशा निर्देश किया और कहा कि इस संमेलन से ही निरंतर और न्यायपूर्ण विकास हासिल करनेके लिए नदी घाटी का याने उस का हिस्सा है जल,जंगल,जमीन का नियोजन केवल तंत्र/तकनीक नहीं जनतंत्र के द्वारा कैसे बढाया,यह तय करेंगे ! उत्तराखंड की गंगा से नर्मदा तक बांधोंका सिलसिला जिस प्रकारके नदी पर आक्रमण करता दिखाई दिया है,वहां विस्थापितों का पुनर्वास ही नहीं प्रकृति के विनाश को रोकना और विकल्पों पर निर्णय लेना है | इसके लिए कानूनी और मैदानी संघर्ष के साथ निर्माण भी तय करेंगे | कल 2 मार्चके रोज 3.30 बजे समापन होगा,उसमें निष्कर्ष और आगेकी दिशा पर प्रस्ताव पारित होगा |
पूर्व वन संरक्षक मनोज मिश्रा जी ने पूरी नदी घाटियों की बात रखी, तो युवा पर्यावरणविद देबोदित्य सिन्हा ने वाटर वेज और एक नदी घाटी में जन्तुओं के रहवास की बात कही | विश्वविख्यात पर्यावरणविद प्रफुल्ल सामंतरा ने नदी घाटियों के संपूर्ण पर जोर दिया |