कुछ दिन तो गुजारो मेरे पहाड़ में।
हिटो पहाड़ -कुछ दिन के लिए ही सही -अपनी अगली पीढ़ी को भी जरूर दिखाए अपना पहाड़, अपनी संस्कृति।
गिरीश गैरोला
तिबारी में हुक्का गुड़गुड़ाते दादाजी, ताक पर रखे लैम्प की रोशनी में चूल्हे में रोटी सेकती माँ ओर चौक में संग्रान्द बजाता औजी दीदा। ये बाते अब किसी सपने की सी लगती है किंतु आपकी एक पहल पहाड़ के सुने पड़े गाँव मे न सिर्फ बहार ला सकती है बल्कि इन्हें पर्यटक गाँव मे बदल सकती है। फिर कभी तो किसी पिकनिक के बहाने ही सही पहाड़ में अपनी जड़ों की तलाश में अगली पीढ़ी अपने विदेशी मित्रो से इसकी खूबसूरती का का बखान करते दिखाई देंगे और अपनी समृद्ध संस्कृति पर गर्व करेंगें।
रोजगार की तलास में युवा घर से क्या निकले कि पहाड़ वापस नही लौटे , धीरे धीरे देखा देखी में पूरे गाव के गाँव खाली हो गए, पैसा तो कमाया पर अपनापन कही खो सा गया । उस लड़ाई -झगड़े में भी प्यार था अपनापन था किन्तु अब न प्यार प्रेम ,न रीति रिवाज, न परंपरा रही और न संस्कृति। हमारी संस्कृति तो अब रंगमंच पर ही दिखाई देती है। काश नौकरी की तलाश में बाहर गए पहाड़ी लोग सेवा निवृति के बाद गाँव लौटे , गाँव मे पुरानी शैली के भवन निर्मित कराए तो कभी छटी -छमायी में उनके बच्चे अपने दोस्तों के साथ पिकनिक के बहाने तो गाँव मे दिखेंगे।
तब हो सकता है देखा – देखी अन्य लोग भी ऐसा करे तो पहाड़ो में होंम स्टे की योजना कामयाब हो और वीरान पड़े पहाड़ के गाव पर्यटक गाँव मे तब्दील ही जाय, जहाँ देशी- विदेशी पर्यटक खुद बाग बगीचे से ताजी ऑर्गेनिक शब्जी तोड़कर खाये, योगा करे, नदी- झरनों और पेड़ो की शुद्ध हवा ले।
ये तिबार वाले पुराने मकान आपको खुद से रुला सकते है अगर आपको कभी इसमें रहने का अहसास हुआ तो।
वो ताक पर सजा लैंप जो उस वक़्त की मजबरी थी आज रोजगार का साधन बन सकती है।
क्या मेरा ये सपना कभी पूरा होगा???☺
हमारी पुरानी विरासत को कायम रखने का एक अनूठा प्रयास टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) के प्रसिद्ध लकड़ी के कारीगर दिनेश लाल जी का ????????❤
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