प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व उत्तराखंड वनाधिकार कांग्रेस के प्रणेता किशोर उपाध्याय ने प्रधानमन्त्री, केंद्रीय सड़क परिवहन मन्त्री और मुख्यमंत्री को चार धाम सड़क परियोजना में हो रहे गम्भीर भ्रष्टाचार, अनियमितताओँ और चिंतनीय पर्यावरणीय प्रभावों पर चिंता व्यक्त करते हुये पत्र लिखा है और कहा है कि यह कैसी सड़क बन रही है, जिस सड़क पर गुजरात का एक ठेकेदार मात्र चौड़ीकरण पर प्रति किलोमीटर दस करोड़ रुपये का गोल-माल कर रहा है।
उपाध्याय ने पत्र में कहा है कि:-
“राजनीतिक स्वार्थ के लिए चारधाम परियोजना के नाम पर उत्तराखंड के जन, जल, जंगल, ज़मीन, देश के और हिमालयी पर्यावरण के साथ किये जा रहे खिलवाड़ के सम्बन्ध में निम्न तथ्य आपके संज्ञान में लाना चाहता हूँ:-
- परियोजना को मैदानी क्षेत्र के मानकों (DLPS) के अंतर्गत डिजाइन किया गया जिसमे 10 मीटर काली सतह बनाना तय हुआ ताकि इस मार्ग को टोल-टैक्स के दायरे मेंलाकर भविष्य में तीर्थयात्रियों और जनता से टोल वसूला जा सके.
- मैदानी क्षेत्र के इस मानक के तहत लगभग 700 हेक्टेयर से अधिक जमीन का अभी तक अधिग्रहण किया जा चुका है. पहाड़ों के भारी कटान से कई भूस्खलन ज़ोन पैदा हो कर नासूर बनते जा रहे हैं. मलबे का निस्तारण समस्या बन खड़ा है. चारा-चुगान, जल-श्रोतों और पैदल रास्तों को भारी क्षति पहुँची. कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी.
- वर्ष 2018 में खुद सड़क मंत्रालय की प्लानिंग ज़ोन ने इस DLPS मानक के दुष्प्रभावों को पहचान कर पहाड़ों में इसे संशोधित कर Intermediate कर दिया पर चारधाम पर पूर्व की भांति काम जारी रखा.
- DLPS मानक के तहत एक किलोमीटर सड़क के चौडीकरण का खर्चा 8-10करोड़ रुपये रखा गया. इतनी भारी भरकम राशि के बावजूद हाइवे खस्ताहाल हो रहे हैं और कई डेंजर ज़ोन बन गए हैं. इसका कारण है भारी तादात में पहाडी कटान. ज्ञात हो कि ग्रामीण क्षेत्र में बनने वाली नयी सड़क की कीमत 1करोड़/किलोमीटर भी नहीं है. देशकी भारी सम्पदा गलत मानकों में लुटाई जा रही है. परिणामस्वरूप प्राकृतिक सम्पदा भी नाश हो रही है.
- जब केंद्र ने 2018में मानक दुरस्त किये तो चारधाम परियोजना पर पहाडी कटान शुरूआती दौर में था और यह 3-4%भी नहीं हुआ था, अब यह 70%हो गया है वह भी पुराने मानकों पर. क्यूँ नहीं इसे तभी दुरस्त कर दिया गया ?
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित हाई पावर कमिटी रिपोर्ट में खुलासा होता है कि स्थापित वन अधिनियम, पर्यावरणीय मानकों का भी सरेआम उल्लंघन हुआ जिसके चलते पर्यावरण और जान-माल की भारी क्षति हुई. 12हजार करोड़ की राशि केवल पहाड़ खोदने और मलबे को उड़ेलने में खर्च हुई. सड़क निर्माण तो नाम मात्र रहा है.
- कमिटी ने यह भी बताया कि चारधाम के लिए धन आवंटित हो जाने के कारण गलतमानकों पर काम जारी रहा. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में मुद्दा जाने के कारण केंद्र स्वयं परियोजना की चौड़ाई 10से 7मीटर करने का प्रस्ताव लेकर आया था. हालांकि कोर्ट ने वर्ष 2018में तय मानकों के अंतर्गत ही सड़क बनाने का निर्णय दिया.
- सुप्रीम कोर्ट कमिटी ने चारधाम मार्ग पर तीर्थयात्रियों और स्थानीय जनों के उपयोग के लिए सड़क मार्ग के साथ-साथ एक 5फीट के पैदल फूटपाथ की सिफारिश की है जो स्वागत योग्य है. इस तरह 5.5मीटर काली सतह, 1.5मीटर पैदल यात्रियों तथा स्थानीय जनों के लिए फूटपाथ, 1मीटर में सुरक्षा ढांचा के तहत कुल 8मीटर के अंतर्गत सड़क का निर्माण सर्वथा उचित है.
- समिति ने यात्रा मार्ग को टोल मुक्त रखने की सिफारिश और ग्रामीणों के रास्ते, पानी के श्रोत तथा अन्य क्षति-ग्रस्त सुविधाओं को तत्काल दुरस्त करने की सिफारिश की है, जोस्वागत योग्य है. सेना वाहनों की सुगम आवाजाही के लिए भी यह मार्ग सर्वथा उचित है.
- यदि यह निर्णय 2018 में ही लागू हो जाता तो देश का हजारों करोड़ रुपये औरहिमालय की अमूल्य वन-सम्पदा नष्ट होने से बचते तथा परियोजना समय पर पूरी हो चुकी चार धाम रोड परियोजना में झोल ही झोल हैं:-
- सवा लाख से ज़्यादा पेड़ काटे।
- दस हज़ार से ज़्यादा पानी के स्रोत ख़त्म।
- Wildlife को गम्भीर ख़तरा।
निष्कर्ष: देश का धन, जनता के जान-माल और हिमालयी पर्यावरण से खिलवाड़ हेतु परियोजना कार्यों की जांच और दोषियों की जवाबदेही तय हो. सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार सुरक्षित रूप से सरकार कार्य पूरा करवाए.