वर्षों पूर्व उत्तराखंड के पहाड़ी गांव को छोड़कर राजधानी दिल्ली और आसपास के मैदानी इलाकों में बस गए, प्रवासी उत्तराखंड निवासी भले ही अपने गांव छुट्टियों में या या किसी खास मौके पर आते हो या ना आते हो,किंतु राजधानी में रहते हुए वे अपने पहाड़ को जरूर याद करते हैं। पहाड़ी पकवान हो पहाड़ी वेशभूषा हो अथवा पहाड़ी बोली हो, सबके चेहरे पर जिसको लेकर एक खास उत्साह देखने को मिलता है ।
विगत 12 सालों से उत्तराखंड महाकौथींग के नाम से राजधानी और आसपास के इलाकों में नौकरी के लिए आए प्रवासी उत्तराखंडी यहां एकत्र होकर अपने अतीत की याद करते हैं अपने पहाड़ों की याद करता है अपने रीति रिवाज और परंपराओं को एक बार फिर सामूहिक रूप से याद करते हैं । एक दौर था जब लोग पहाड़ी बोलने में और पहाड़ी दिखने में पिछड़े होने का एहसास करते थे लेकिन वक्त और बदला तो आज यह हालात हैं कि लोग अपनी नई पीढ़ी को गढ़वाली बोली भाषा परंपरा परंपरा रीति रिवाज और भावनाओं के प्रति जागरूक कर रहे हैं