जिस देश में गंगा बहती है उस देश के वासी आचमन के लिए तरस जाएंगे , गंगा स्नान तो बहुत दूर कि बात है , देवभूमि मे ही ऐसा देखना पड़ेगा किसी ने सोचा नहीं था , जोशीमठ आपदा के बाद भी सबक न लेने वाले सरकारों ने गंगा नदी को नाले के रूप में संकुचित कर दिया है हालात यह हैं कि पवित्र गंगा और उसकी सहायक नदी अलकनंदा गंदे नालों का पानी और सीवर को अपने मे समेट रही है ।
अनियंत्रित विकास को लेकर चमोली जिले के जोशीमठ की कहानी से लगता है प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया? यही वजह है कि आज भी विकास के नाम पर पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ कर गंगा का दोहन कर जिस तरीके से जल रोका जा रहा है उसका परिणाम अब पौड़ी जिले में भी देखने को मिल रहा है,
यहाँ जीबीके डैम से निर्धारित मात्रा में पानी न छोड़े जाने की वजह से श्रद्धालु मकर संक्रांति के पावन अवसर पर भी गंगा स्नान नहीं कर सके। दरअसल जीबीके के साथ हुए करार में यह स्पष्ट कहा गया था कि हिमालय से चलने वाली गंगा के पानी के 25 % हिस्से को अनवरत बहते रहने दिया जाएगा, जबकि गंगा की सबसे महत्वपूर्ण सहायक नदी अलकनंदा श्रीनगर में एक नाले के रूप में बह रही है यहां शहर से लगे 3 किलोमीटर के दायरे में नदी पूर्णतया सूख चुकी है और एक नाले के रूप में बह रही है स्थानीय लोगों की माने तो यहाँ गंगा जो नाले के रूप में बह रही है उसमें भी केवल घरों का गंदा और सीवर का पानी बह रहा है जिसकी वजह से श्रीनगर में श्रीकोट घाट , किल्कीलेश्वर घाट, शारदा घाट में पानी न होने की वजह से श्रद्धालु बिना स्नान के ही वापस लौटने को मजबूर हो गए । यहां जल विद्युत परियोजना की झील में अलकनंदा का पानी रोका गया है जो नहर के जरिए पावर हाउस तक पहुंच रहा है जिस वजह से नगर क्षेत्र के 3 किलोमीटर के दायरे में नदी पूरी तरह से सूख चुकी है जो पानी नदी में बचा हुआ वह भी रुका हुआ पानी है जिसमें भी काई जम चुकी है । श्रद्धालु स्नान के लिए घाट पर तो पहुंचे लेकिन गंगा को नाले के रूप में बहता देख बिना स्नान किए वापस लौट गए ।
लोगों का कहना है कि कम से कम हिंदू धार्मिक पर्व के अवसर पर तो स्नान के लायक पानी छोड़ दिया जाना चाहिए। हालांकि जीवीके कंपनी के साथ हुए करार के अनुसार उसे 25% पानी छोड़ना था बावजूद इसके हिंदू समाज और उसकी परंपराओं की लगातार अवहेलना की जा रही है