उत्तरकाशी: बार्सु उत्तरकाशी जिले का एक ऐसा गाँव है जिसे देखने के लिए देश के महानगरो से लोग दौड़े चले आते है और इसकी सेलफ़ी अपने कैमरे मे कैद कर ले जाते है | एक ओर जहां लोग पहाड़ो से पलायन कर शहरो की तरफ भाग रहे है वही उत्तरकाशी के जगमोहन रावत न सिर्फ खुद गाँव मे रहते है बल्कि अपने बच्चो को भी उच्च शिक्षा देने के बाद गाँव से ही जोड़ रहे है | दिसंबर महीने मे कड़कती शर्दी बाद भी उत्तराखंड के पहाड़ो मे नए साल के आगमन के साथ ही होटल और रिज़ॉर्ट मे बूकिंग सुरू होने लगी है |
मैदान के प्रदूषित जीवन से कुछ पल सुकून के गुजारने के लिए पर्यटक अक्सर शांत पहाड़ो की तलास मे रहते है | ऐसे ही पर्यटको की पसंद है दयारा रिज़ॉर्ट जो दयारा के बेस कैंप बार्सु गाँव मे है | एक रात यहा विश्राम के बाद पर्यटक दयारा और अन्य स्थलो की ट्रैकिंग सुरू करते हैं । एडवेंचर पसंद लोग बार्सु गाँव से 3 किमी बरनाला और 7 किमी दयारा का ट्रैक करते है | बार्सु गाँव अपने आप मे बेहद खूबसूरती लिए हुए है । चारो तरफ से बर्फ से ढकी पहाड़ियो के दीदार पर्यटको के दिल को शुकून से भर देते है ।
बार्सु मे गाँव के ही जगमोहन रावत द्वारा पहाड़ी शैली मे गेस्ट हाउस बनाया गया है | शर्द भरी रात मे भी पर्यटक इसके आँगन मे अलाव के चारो तरफ शर्दी का आनंद लेते हुए कैंप फायर का आनंद लेते हुए देखे जा सकते है | इतना ही नहीं गाँव मे स्वास्थ्य के लिए बेहतर ट्राउट मछली का भी उत्पादन होता है | जगमोहन रावत के छोटे बेटे इस काम मे विशेष प्रशिक्षण लिए है । उन्होने बताया कि डेन्मार्क से ट्राउट मछली का बीज मंगाया गया है । यह बेहद ठंडे पानी कि मांसाहारी मछली है जो स्वच्छ पानी मे पलती और बढ़ती है |
वर्ष 2015 मे रास्ट्रिया कृषि विकास योजना के अंतर्गत बार्सु मे काम सुरू किया गया था लेकिन उस वक्त सफलता नहीं मिली।इसके बाद राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2019 मे नील क्रांति के अंतर्गत एक बार फिर से योजना दी गई जिसके अंतर्गत ढाई लाख रुपये निर्माण के लिए और 3 लाख फीड और शीड के लिए दिया गया था इस वक्त सुरुवाती दौर मे साढ़े 12 कुंतल ट्राउट निकल रही है, जल्द ही 10 टन का लक्ष्य है ट्राउट मछ्ली काफी महंगे दाम पर बिकती है, और इसके पालन के लिए वैज्ञानिक तकनीकी कि जानकारी बेहद जरूरु होती है |

