चुनाव से पहले हुए नेतृत्व परिवर्तन से भले ही भारतीय जनता पार्टी की आम लोगों के बीच में किरकिरी हो रही हो, मगर इस नाटकीय घटनाक्रम में पार्टी रणनीतिकार सत्ता में वापसी की संभावना तलाश रहे हैं। अपनी चुनावी रणनीति से चौंकाने वाले प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की सियासी चाल के क्या निहितार्थ हैं, यह आने वाला बक्त बताएगा।
डा बृजेश सती / वरिष्ठ पत्रकार |
त्रिवेंद्र सिंह को मार्च महीने में हटाकर गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी की गई थी। बकायदा प्रदेश अध्यक्ष को भी बदला गया था । लेकिन उपचुनाव में तकनीकी पेंच के चलते तीरथ सिंह रावत को पार्टी आलाकमान ने बदलने की रणनीति को अंजाम दिया। बदले राजनीतिक माहौल में पार्टी कुमाऊं मंडल से ऐसे चेहरे को सामने लाकर चुनाव मैदान में कांग्रेस को टक्कर देना चाहती थी , जो जातीय व क्षेत्रीय संतुलन को बनाने के साथ ही सैन्य पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखता हो। इस पैमाने पर खटीमा के विधायक पुष्कर सिंह धामी सटीक बैठे। यही कारण रहा कि उनके पास प्रशासनिक अनुभव ना होने के बावजूद कई तजुर्बे कार वरिष्ठ विधायकों के ऊपर तवज्जो दी गई । राजनीतिक प्रेक्षक इसका अहम कारण कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत की काट देखते हैं। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि कुमाऊं मंडल में भाजपा के पास ऐसा कोई दमदार चेहरा नहीं था जो हरीश रावत के प्रभाव को कम कर सकता था। ऐसे में पार्टी आलाकमान के पास पुष्कर सिंह धामी के अलावा कोई विकल्प नहीं था। हालांकि बिशन सिंह चुफाल भी एक विकल्प हो सकते थे, मगर धामी के पक्ष में यह बात रही कि वह तराई क्षेत्र के उधम सिंह जनपद की खटीमा सीट से विधायक होने के साथ ही पिथौरागढ़ जनपद के मूल निवासी हैं । इससे भाजपा ने कुमाऊं मंडल के दो जनपदा को एक तीर से साधने की कोशिश की गई । इसके अलावा सैन्य पृष्ठभूमि भी उनका प्लस प्वाइंट रहा ।
अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि चुनाव से 6 महीने पहले हुए इस नेतृत्व परिवर्तन से भारतीय जनता पार्टी कितना डैमेज कंट्रोल करती है। वैसे भी 2022 का चुनाव उसके लिए आसान नहीं है । एंटी इनकंबेंसी , 5 वर्ष के कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्रियों को बदलना, लचर प्रशासन, जन आकांक्षाओं पर खरा न उतरना, संगठन से जुड़े हुए कार्यकर्ताओं की उपेक्षा उसकी सत्ता में वापसी के बडे अवरोध हैं ।