लोकतंत्र में अधिकारी और जनप्रतिनिधि मिलकर गोलमाल करने लगे तो देश की जनता को कैसे पता चलेगा कि उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधि आखिर कर क्या रहे है ?
यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि पौड़ी जिले मे श्रीनगर विधानसभा की बैठक लेने के लिए पहुंचे कैबिनेट मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने बैठक से पत्रकारों को बाहर कर दिया। पत्रकारों ने जब सवाल उठाए तो उनसे कह दे गया कि उन्हे बाइट के लिए बाद मे बुला दिया जाएगा।
तो क्या लोकतंत्र में चुने हुए जनप्रतिनिधि या मंत्री जो दिखाना चाहते हैं वही पत्रकार छाप लेंगे? और सरकार इसी तरह से चलेगी ?
अगर ऐसा ही है तो मंत्री सूचना विभाग से अथवा अपने ट्विटर हैंडल से जो भी दिखाना चाहे वह कह सकते है पत्रकारो की फिर जरूरत ही कहाँ रह जाती है फिर उन्हे बैठक कवर करने के लिए बुलाया ही क्यो जाता है । आखिर बैठक मे ऐसा क्या होता है जिसे मंत्री गुप्त रखना चाहते है ? और जिसके बाहर आने से मंत्री को डर है ? जनता से चुने हुए प्रतिनधि कोई बात करे तो जनता तक उसे पहुचने से डर कैसा – दूरी कैसे ?
याने कि पत्रकारो को बैठक से बाहर करने के बाद अंदर कुछ खिचड़ी जरूर पक रही है ॥
बड़ा सवाल यह है कि मंत्री आज जिस पद और प्रोटोकोल की बात कर रहे हैं शायद वह भूल रहे हैं कि वह जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं और जनता की तरफ से ही प्रशासन से बात कर रहे हैं जाहिर है कि जिन लाखों की जनसंख्या ने उन्हें वोट देकर विधायक या मंत्री बनाया है वह इतनी बड़ी तादाद में वहां बैठक में मौजूद नहीं रह सकते उनके प्रतिनिधि के तौर पर विधायक अथवा मंत्री प्रशासन से बैठक कर रहे हैं ।
ऐसे में जो जनता जिन प्रतिनिधियों को चुन कर विधान सभा मे भेज रही है उन तक सही खबर कैसे पहुंचे कि आखिर बैठक में हो क्या रहा है? चल क्या रहा है ?
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में पत्रकारिता को स्थान दिया गया है और सोशल मीडिया आने के बाद पत्रकारिता पर खबरों को रोकने के जो आरोप लगते रहे है वे उस पर भी काफी हद तक लगाम लग चुकी है है ऐसे में विकास योजनाओं की बैठक से पत्रकारों को बाहर जाने के लिए कह दिया जाता है तो इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला ही कहा जा सकता है।
तो क्या मंत्री जिला प्रशासन के साथ मिलकर अपने हित के अनुसार योजनाएं बना रहे हैं? मंत्री को किस बात का डर है कि पत्रकार कौन सी बात बाहर ले जाएंगे? क्या सरकारी बैठकों में ऐसा कुछ होता है जिसका मंत्रियों को लीक होने का डर है
पिछले दिनो गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत पौड़ी मे ही विकास बैठकों के बाद कह चुके हैं कि पौड़ी में अब कोई समस्या ही शेष नहीं है और अगर कोई समस्या होती तो जनप्रतिनिधि उनके समक्ष रखते।
जाहिर की जब जनप्रतिनिधि पत्रकारों को इस तरह से विकास की बैठकों से बाहर कर देंगे तो ऐसी बैठको मे मंत्री अथवा विधायको की अधिकारियों से गठजोड़ की कहानियो से कौन वाकिफ कराएगा, यह बड़ा सवाल है>