गरीब की झोपड़ी में बजता शिक्षा का संगीत

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जरूरतमंदों के लिए संगीता बनी मसीहा!

हरीश असवाल ।
श्रीनगर। खुदा भी अपने रहमतों की उस पर बरसात करता है, जो जरूरतमंद की मदद के लिए आगे बढ़ता है। ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी। दरअसल, ये कहावत पेशे से शिक्षिका और समाजसेवा के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहने वाली संगीता कोठियाल फरासी पर सटीक बैठती है। पौड़ी के प्राथमिक स्कूल में सहायक अध्यापिका के पद पर तैनात संगीता शिक्षा और समाजसेवा के क्षेत्र में एक नई मिसाल बन चुकी है।

संगीता स्कूल में बच्चों को पढ़ाकर अपनी शिक्षिका होने का फर्ज तो निभा ही रही हैं, साथ ही उन जरूरतमंद बच्चों का भविष्य भी संवारने में जुटी है कि जिनको दो जून की रोटी भी मुश्किल से नसीब हो पाती है। इन सबके बीच कूड़े-कबाड़ के ढेर में जिंदगी की असल वास्तविकता से अंजान और कटोरा लेकर सड़कों पर दो जून की रोटी का जुगाड़ कर जिंदगी से गुजर बसर करने वाले बच्चों की तरफ संगीता का ध्यान गया तो उसने उन्हें अपना मानकर उनका भविष्य संवारने की ठान ली।

अब तक संगीता ऐसे 15 बच्चों को स्कूल में दाखिल करवा चुकी हैं और ट्यूशन की अलग से व्यवस्था भी कराई है। जिसका खर्च वह खुद वहन करती है। इतना ही नहीं सरकारी ड्यूटी पूरी करने के बाद वो खुद इन बच्चों को दो घंटे पढ़ाने के लिए समय निकालती है। इन बच्चों का किसी तरह भविष्य बन जाए इसके लिए वह उसने एक कर्मचारी को मासिक वेतन पर तक रखा है। अपने मिशन में जुटी संगीता बताती हैं जब उनकी तैनाती यहां हुई तो उन्होंने गरीब बच्चों से भीख मांगने की आदत छुड़ाकर उन्हें शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने का संकल्प लिया था। धीरे-धीरे उनके माता पिता से मुलाकात कर बच्चों से भीख मंगवाने की बजाय उन्हें स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया। शिक्षिका संगीता ने बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, कॉपी किताब, स्कूल यूनिफार्म आदि देने का वायदा किया तो घरवालों नें हामी भर दी। संगीता बताती हैं कि वह पौड़ी के गांव में तैनात हैं और श्रीनगर से ही आना जाना करती है। साथ ही संगीता कहती हैं कि इन बच्चों की मदद करके वह शिक्षिका होने के साथ ही समाज और इंसानियत का फर्ज भी अदा कर रही है। कहती है कि यदि हम इन बच्चों की सहायता नहीं करेंगे तो इनका जीवन अंधकारमय हो जायेगा और यदि मेरे थोड़े से प्रयास से यदि इन बच्चों को जीवन में कामयाबी मिल जाए तो मेरा जीवन सार्थक हो जायेगा।

इसके अलावा संगीता इसी साल से बच्चों को अपनी दुधबोली गढ़वाली-कुमांऊनी भाषा का ज्ञान भी दे रही हैं जिसकी बाकायदा निशुल्क कक्षाएं संचालित हो रही है। महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी संगीता फरासी निरंतर सक्रिय रूप से काम कर रही है जिनमें गरीब कन्याओं की शादी मे आर्थिक मदद भी करती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पहाड़ की महिला का जीवन काफी विकटताओं से भरा होता है। उसके बावजूद संगीता के भीतर समाज सेवा का जब्जा और समर्पण ना सिर्फ क्षेत्र बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रेरणा की एक मिसाल है।

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