भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण की तर्ज पर ही क्या देवस्थानम बोर्ड का हसरत होने वाला है?
उत्तराखंड की चारधाम यात्रा में तीन प्रमुख धाम गंगोत्री यमुनोत्री और केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद बद्रीनाथ धाम के कपाट पूर्व निर्धारित समय पर नहीं खुल सके। हाल ही में प्रभाव में आए देवस्थानम बोर्ड में विधायकों की नियुक्ति को लेकर कई तरह की प्रतिक्रिया सामने आने लगी धामों से जुड़े विधायक को समिति में जोड़ा जाना बेहद जरूरी भी माना जा रहा था। देवस्थानम बोर्ड अच्छी तरह से काम करें और उत्तराखंड में चारधाम यात्रा पहले से बेहतर व्यवस्थाओं के साथ चले, यही सब की शुभकामनाएं हैं, किंतु पूर्व में मिले कड़े अनुभव याद दिलाने को मजबूर करते हैं कि पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण विषय पर सुप्रीम कोर्ट की चिंताओं पर गठित भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण का विगत 15 वर्षों में जो हस्र हुआ , वह देवस्थानम बोर्ड का न हो , क्योंकि इस प्राधिकरण में भी गंगा प्रवाह स्थल से जुड़े आठ विधायकों को सदस्य बनाया गया था ये अलग बात है नरेंद्र नगर के विधायक सुबोध उनियाल इसके सदस्य होने के साथ-साथ कैबिनेट मंत्री भी हैं।
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर वर्ष 2005 में गठित भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण विगत 15 वर्षों में कोई उपलब्धि दर्ज नहीं करा सका । जबकि प्राधिकरण में गंगा नदी के प्रवाह मार्ग से लगे हुए विधानसभा क्षेत्र, गंगोत्री, यमुनोत्री, प्रताप नगर ,घनसाली ,टिहरी, नरेंद्र नगर ,देवप्रयाग और धनोल्टी के 8 विधायक सदस्य हैं।
आइए आपको बताते हैं कि गठन से लेकर अब तक भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण की क्या-क्या उपलब्धियां रही हैं । भागीरथी नदी के प्रवाह स्थल के साथ नदी से जुड़े गाढ गदरो के केचमेंट में विकास की कार्य योजना तैयार कर विकास को धरातल पर उतारने के लिए प्राधिकरण का गठन हुआ था। गंगोत्री से लेकर देवप्रयाग तक को भागीरथी नाम दिया गया है लिहाजा इस क्षेत्र के विधायक इसके सदस्य माने गए हैं । प्राधिकरण के दो अंग बनाए गए थे जिसमें पहले अंग के अध्यक्ष मुख्यमंत्री को नामित किया गया था, और भागीरथी क्षेत्र से लगे हुए 8 विधानसभा के विधायक इसके सदस्य बनाए गए थे। दूसरी कार्यपालिका समिति में 2 विधायकों को शामिल किया गया था ।
वर्ष 2005 में प्रताप नगर विधानसभा के विधायक फूल सिंह बिष्ट को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष नियुक्त किया उसके बाद बीडी रतूड़ी उत्तराखंड क्रांति दल की तरफ से उपाध्यक्ष बने । रतूड़ी के कार्यकाल में भागीरथी के प्रभाव क्षेत्र में विकास के लिए कार्य योजना बनाने का ठेका दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी को दिया गया था किंतु प्राइवेट कंपनी ने 3 वर्ष में ही हाथ खड़े कर दिए । उसके बाद कीर्ति सिंह नेगी प्राधिकरण के उपाध्यक्ष बनाए गए इनके कार्यकाल में तय किया गया कि प्राधिकरण खुद अपना विकास का मास्टर प्लान तैयार करेगा।
वर्तमान में अब्बल सिंह ने प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के तौर पर 8 मार्च 2019 को पदभार ग्रहण किया। 12 सितंबर को प्राधिकरण की मीटिंग हुई जिसके मिनट्स भी आज तक बाहर नहीं आ सके।
दरअसल प्राधिकरण द्वारा बनाए गए कार्य योजना पर जब चर्चा हुई तो एक बिंदु पर पूरा मामला अटक गया जहां प्राधिकरण से जुड़े हर जिले में पहले से ही दो या तीन प्राधिकरण काम कर रहे हैं जिसके चलते लोगों में कन्फ्यूजन पैदा हो रहा था , लिहाजा यह तय किया गया एक ही प्राधिकरण को मौजूदा स्वरूप में रखा जाए किंतु कौन सा प्राधिकरण महत्वपूर्ण है और किसे समाप्त किया जाना चाहिए इस पर कोई फैसला नहीं हो सका। तब से लेकर अब तक 15 वर्षो में भागीरथी विकास प्राधिकरण के काम के नाम पर भले ही करोड़ों रुपए खर्च हो गए किंतु काम के नाम पर सिर्फ एक कार्य योजना बनाई गई जिस पर कोई चर्चा तक नहीं हो सकी।
अब सुप्रीम कोर्ट की चिंता पर गठित की गई भागीरथी विकास नदी घाटी विकास प्राधिकरण का यह हश्र हो रहा है तो देवस्थानम बोर्ड का क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता है।
चार धाम यात्रा तैयारियों की बात ही की जाए तो विगत वर्षों तक मंदिर समिति से जुड़े समितियां ही समस्त व्यवस्थाएं कर रही थी इस वर्ष देवस्थानम बोर्ड के स्वरूप में आ जाने के बाद जो अव्यवस्था देखने को मिली उससे जाहिर है की देवस्थानम बोर्ड गठन तो कर दिया किंतु उसे धरातल पर क्या करना है और कैसे करना है इस पर कोई मॉक ड्रिल नहीं हो पाई जिसकी वजह से परिणाम यह है की विश्व प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम अपने निर्धारित तिथि पर नहीं खुल पा रहा है और इस को संचालित करने वाले देवस्थानम बोर्ड मैं सदस्यों का नामांकन अभी भी चल ही रहा है। भक्त भले ही कुछ भी कहते रहें किंतु देवस्थानम बोर्ड में सदस्य के तौर पर नामित होने वाले विधायकों को अपने भविष्य कीी चिंता होना लाजमी है