बिना हरदा के उत्तराखंड काँग्रेस – क्यों किया पार्टी ने किनारा ?

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एक दौर था जब उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेता बड़े चेहरे हरीश रावत को इसलिए साथ नहीं रखते थे कि मीडिया की सुर्खियां सब हरदा बटोर ले जाते थे और बाकी के लोग हसिए में सिमट कर रह जाते थे , वक्त बदला दौर बदला और अब ढलती उम्र मे सत्ता भी नहीं रही तो क्या परिस्थितियां भी बदल गई आज पूर्व सीएम के धरने में कांग्रेस के बड़े नेताओं की गैर गैर मौजूदगी क्या उत्तराखंड में कांग्रेस के भविष्य और वर्तमान को लेकर कुछ नए समीकरण की तरफ

उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी को इंसाफ दिलाने और आरोपी वीआईपी का नाम उजागर करने की मांग को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत का धरना रात में भी जारी रहा ।
24 घंटे के धरने में लोगों को परेशानी ना हो रात में ठंड न लगे इसके लिए अलाव का भी इंतजाम किया गया था और यहां से यह संदेश देने की कोशिश की गई कि उत्तराखंड के बेटियों की हिफाजत और उत्तराखंड में बेटियों की सुरक्षा को लेकर जो भी सवाल उठेंगे उसका इसी तरह से जवाब दिया जाता रहेगा ।
अब सवाल इस बार तो लेकर भी है कि इस धरने के जरिए क्या वीआईपी का नाम सरकार उजागर करेगी ? कितना दबाव सरकार पर बनेगा यह भी कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना जरूर है कि हरीश रावत ने इस धरने के साथ जिन बातों को जोड़ने की कोशिश की, सामाजिक और राजनीतिक तौर पर जिस जिस तरह से उन्होंने मजबूत कदम उठाया क्या उनकी ही पार्टी कांग्रेस ने उनसे किनारा कर दिया ? क्या कांग्रेस के लोग ही उन्हे अलग थलग छोड़ कर चले गए ? क्योंकि धरणे मे कुछ लोग जरूर साथ नजर आए पर कोई बड़ा चेहरा , बड़ा पदाधिकारी कोई विधायक हरीश रावत के धरने में दिखा नहीं
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हरीश रावत भले ही इस धरने को गैर राजनीतिक बता रहे हो लेकिन एक राजनीतिक शख्स जो राज्य का पूर्व मुख्यमंत्री रहा हो वह धरने पर बैठे और उसके साथ राजनीति को ना जोड़ा जाए ऐसा कैसे हो सकता है ?
कुछ पूर्व विधायक पूर्व सांसद जरूर हरीश रावत के संग दिखाई दिए जो अमोमन उनके साथ दिखाई देते हैं, मसलन प्रदीप टम्टा , गोविंद कुंजवाल और हीरा सिंह बिष्ट भी नजर आए थे , लेकिन यह राजनीति है और इस राजनीति में मायने इसी बात के होते हैं कि आपके साथ मौजूदा वक्त में कितने लोग खड़े हैं
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हरीश रावत के धरने का मकसद बेशक अंकिता भंडारे को इंसाफ दिलाने का रहा हो लेकिन राजनीतिक और सामाजिक तौर पर क्या हरीश रावत को भी एक संदेश कांग्रेस ने देने की कोशिश की है ?
क्या हरीश रावत के लिए अलार्मग सिचुएशन है क्या सियासी फील्ड में उन्हें अलर्ट हो जाना चाहिए ? क्या कांग्रेस ने हरीश रावत को बता दिया है कि उनको न सिर्फ अपनी राजनीति का तरीका बदलना होगा या फिर उन्हें इस राजनीति से ही दूर ही जाना होगा
क्योंकि कांग्रेस की जो मौजूदा लीडरशिप उत्तराखंड में है वह संभवत अगर उनसे दूरी अगर बना रही है तो उसके बहुत मायने हो जाते हैं और आप हरीश रावत आगे क्या करेंगे यह भी एक बड़ा सवाल है>

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