देहरादून। गिरीश गैरोला
विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने भाजपा विधायक महेंद्र भट्ट और गोपाल रावत को उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम् बोर्ड में सदस्य के रूप में नामित किया है। महेंद्र भट्ट बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र और गोपाल रावत गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं। विधानसभा ने उनके मनोनयन के आदेश जारी कर दिए हैं। चारधाम और उनके आसपास के 51 मंदिरों में अवस्थापना सुविधाओं का विकास, समुचित यात्रा संचालन एवं प्रबंधन के लिए उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम् प्रबंधन अधिनियम को बनाया गया है। प्रदेश सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों में से बोर्ड में पदेन सदस्य के रूप में नामित करने के लिए प्राधिकृत किया था।
गोपाल रावत उस गंगोत्री विधानसभा से विधायक हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि बिना गंगोत्री के उत्तराखंड में सरकार नहीं बन सकती इस बार खाली पड़े 3 मंत्री पदों में उम्मीदवारी पर उम्मीद लगाए गंगोत्री विधायक गोपाल सिंह रावत को देवस्थानम बोर्ड में सदस्य के रूप में नामित कर गंगोत्री के साथ भद्दा मजाक ही किया गया है। इससे बेहतर तो पूर्व भाजपा नेता और वर्तमान में भाजपा से बाहर, सूरत राम नौटियाल ही बाजी मारते दिखे जो गंगोत्री से विधायक के टिकट की दावेदारी करते करते वानप्रस्थ आश्रम में पहुँच गए, टिकट तो नही मिला पर चार धाम उपाध्यक्ष पद को तो शोभायमान किया , कम से कम नाम का प्रोटोकॉल तो उनकी शान बढ़ा ही रहा था।
उत्तराखंड के चार धाम यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण बद्रीनाथ धाम और उसके विधायक महेंद्र भट्ट को मंत्री पद की दावेदारी में पहली पंक्ति में माना जा रहा था देवस्थान बोर्ड को लेकर स्थानीय लोगों को मनाने एवं सीएम द्वारा गैर सैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने से पहले महेंद्र भट्ट द्वारा यही मांग उठाना, इन सब से लोग उम्मीद लगाए बैठे थे कि महेंद्र अब त्रिवेंद्र के नजदीक हो गए हैं किंतु महेंद्र से इंद्र का संधि विच्छेद का कर म को अलग कर दिया है। महेंद्र भट्ट की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में गहरी पैठ के चलते भी उन्हें मंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था, उत्तराखंड की चारधाम यात्रा में से तीन धर्मों के कपाट खोले जाने के बाद सदस्य के रूप में नामित हो रहे इन विधायकों को मिलकर पूर्व निर्धारित तिथि से हटकर खोले जा रहे बद्रीनाथ धाम के कपाट ही मिलकर खोलने हैं, यह वही बद्रीनाथ धाम है जहां से महेंद्र भट्ट विधायक बनकर जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
गंगोत्री विधायक गोपाल सिंह रावत से दूरभाष बताया कि फिलहाल 2 विधायकों का नामांकन विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से हुआ है इसी तरह से कई अन्य विधायक भी
अन्य समितियों के अध्यक्ष नामित किए गए हैं। यानी के अगर विधायकोंं की गोलमाल भाषा का अपने शब्दों में अर्थ निकाला जाए तो वह यही निकलताा है देवस्थानम बोर्ड का सदस्य नामित हो जाने से भविष्यय की उम्मीदोंं पर कोई विराम नहीं लगा है। या कहे कि उम्मीदें कायम है।
फिलहाल को रोना ने तीर्थ धाम से जुड़े हमारे ने दोनों विधायकों के हाथ में एक एक बड़ा झुनझुना जरूर पकड़ा दिया है जिसे सोशल डिस्टेंस के साथ बजाते रहने के और कोई दूसरा उपाय नजर नहीं आता
आखिर ऐसा क्या है जिसके चलते देवस्थानम बोर्ड के सदस्य नामित होने पर खुशी नहीं है आइए आपको बताते हैं की भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण का भी इसी तरह से गठन हुआ था जिसमें 8 विधायक नामित किए गए थे अब तक किए गए कार्यों पर एक नजर डालते हैं।
भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण की तर्ज पर ही क्या देवस्थानम बोर्ड का हसरत होने वाला है बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर वर्ष 2005 में गठित भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण विगत 15 वर्षों में कोई उपलब्धि दर्ज नहीं करा सकी जबकि प्राधिकरण में गंगा नदी के प्रवाह मार्ग से लगे हुए विधानसभा क्षेत्र, गंगोत्री, यमुनोत्री, प्रताप नगर ,घनसाली ,टिहरी, नरेंद्र नगर ,देवप्रयाग और धनोल्टी के 8 विधायक सदस्य हैं ।
आइए आपको बताते हैं कि अब तक प्राधिकरण की क्या-क्या उपलब्धियां रही हैं ।
भागीरथी नदी के प्रवाह स्थल के साथ नदी से जुड़े गाड़ गदेरो में विकास की कार्य योजना तैयार कर विकास को धरातल पर उतारने के लिए प्राधिकरण का गठन हुआ था । गंगोत्री से लेकर देवप्रयाग तक गंगा नदी को भागीरथी उप नाम दिया गया है , लिहाजा यहां तक के विधायक इसके सदस्य माने गए हैं। प्राधिकरण के दो अंग बनाए गए थे जिसमें पहले अंग के अध्यक्ष मुख्यमंत्री को नामित किया गया था , और भागीरथी क्षेत्र से लगे हुए 8 विधानसभा के विधायक इसके सदस्य बनाए गए थे । दूसरी कार्यपालिका समिति में 2 विधायकों को शामिल किया गया था ।
वर्ष 2005 में प्रताप नगर विधानसभा के विधायक फूल सिंह बिष्ट को कांग्रेस सरकार ने भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष नियुक्त किया । उसके बाद बीडी रतूड़ी उत्तराखंड क्रांति दल की कोटे से उपाध्यक्ष बने । रतूड़ी के कार्यकाल में भागीरथी के प्रभाव क्षेत्र में विकास के लिए कार्य योजना बनाने का ठेका दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी को दिया गया किंतु प्राइवेट कंपनी ने 3 वर्ष में ही हाथ खड़े कर दिए , उसके बाद कीर्ति सिंह नेगी प्राधिकरण के उपाध्यक्ष बनाए गए इनके कार्यकाल में तय किया गया कि प्राधिकरण खुद अपना मास्टर प्लान तैयार करेगा।
वर्तमान उपाध्यक्ष अब्बल सिंह अभय सिह प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के तौर पर 8 मार्च 2019 को पदभार ग्रहण किया। 12 सितंबर को हुई प्राधिकरण की मीटिंग में की मिनट्स आज तक बाहर नहीं आ सके ।
दरअसल प्राधिकरण द्वारा बनाए गए कार्य योजना पर जब चर्चा हुई तो एक बिंदु पर पूरा मामला अटक गया जहां प्राधिकरण से जुड़े हर जिले में पहले से ही दो या तीन प्राधिकरण पहले से ही काम कर रहे हैं, जिसके चलते लोगों में कन्फ्यूजन पैदा हो रहा है । लिहाजा तय किया गया इनमें से किसी एक ही प्राधिकरण को जिंदा रखा जाए, अब कौन सा प्राधिकरण महत्वपूर्ण है और किसे समाप्त किया जाना चाहिए इस पर कोई फैसला आज तक नहीं हो सका । तब से लेकर अब तक 15 वर्षो से भागीरथी विकास प्राधिकरण के काम के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च हो गए किंतु काम के नाम पर सिर्फ एक कार्य योजना बनाई गई जिस पर आज तक कोई चर्चा भी नहीं हो सकी।