165 किलो वजनी महिला की सफल नी रिप्लेसमेंट हुई

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देहरादून। सूडान की 165 किलोग्राम वजनी 60 वर्षीय महिला की विश्व प्रसिद्ध जॉइंट रिप्लेसमैंट सर्जन डॉ. विक्रम शाह और उनकी टीम द्वारा शैल्बी अस्पताल में दोनों घुटनों की सफल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की गई। सूडान की राजधानी खार्तूम की रहने वाली सामिया अहमद 2005 में एलीफेंटियासिस से संक्रमित हो गई थी, जिसे आमतौर पर हाथी पांव की बीमारी कहा जाता है। मच्छरों द्वारा फैलने वाली इस दुर्लभ स्थिति में प्रभावित व्यक्ति के पैर और हाथ असामान्य रूप से सूज जाते हैं। इस स्थिति के कारण उनका वजन तेजी से बढ़ने लगा। हमारे घुटने और कूल्हे के जोड़ पूरे शरीर का भार वहन करते हैं। मोटे व्यक्ति के घुटने और कूल्हे वजन के कारण तनाव में रहते हैं। इसके कारण घुटने का ऑस्टियोआर्थराइटिस (घुटने के जोड़ों का गठिया) बहुत मोटे लोगों में एक आम स्थिति है।
शेल्बी अस्पताल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ विक्रम शाह कहते हैं , सामिया के पैर में पहले भी दो फ्रैक्चर हुए थे। 2012 में उनके दाहिने पैर में उनकी निचली तीसरी टिबिया हड्डी (टखने से थोड़ी ऊपर की हड्डी) में फ्रैक्चर हुआ था और 2015 में उनके बाएं पैर में उनके प्रॉक्सिमल टिबिया (घुटने के ठीक नीचे की हड्डी) में फ्रैक्चर हो गया था। इसके लिए उन्होंने पहले पांच आर्थोपेडिक सर्जरी करवाई थीं। इनमें से दो सूडान में, दो यूएई में और एक मिस्र में करवाई गई थी। पिछले कुछ महीनों से वे बिस्तर पर ही थी और घुटनों में तेज दर्द और बेचैनी के साथ थोड़ा सा चल-फिर सकती थी। यह मामला अनोखा था, जिसने उनके घुटने के जोड़ों को गंभीर रूप से आर्थराइटिक बना दिया और इस प्रकार उन्हें नुकसान पहुंचाया।
डॉ. विक्रम शाह कहते हैं, “हमने एक विशेष रिसर्फेसिंग टिबियल बेस प्लेट इम्प्लांट का उपयोग किया, जिसका विशेष रूप से तब उपयोग किया जाता है जब प्रॉक्सिमल टिबिया में पिछली सर्जरी में उपयोग किए गए इम्प्लांट से बाधा आती है। इस इम्प्लांट का भारत में पहली बार उपयोग किया गया हैं जिसका निर्माण अमेरिका में हमारी इम्प्लांट निर्माण यूनिट में होता है। डॉ विक्रम ने बताया कि सामिया अहमद का नी रिप्लेसमैंट सफल रहा है। चूंकि वे अब चलने लगेंगी और चलने से होने वाले ब्लड सर्कुलेशन के कारण उनके हाथीपांव की तीव्रता में भी कमी आएगी, चलने-फिरने से उनके हाथीपांव की तीव्रता कम हो जाएगी।

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