टिहरी गढ़वाल – पिल्खेश्वर और गौलेश्वर महादेव की पुजा का असर

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ओम नमः शिवाय

बड़े शहरों में आपने बड़े-बड़े मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें देखी होंगी जिसे देख कर आपको लगता होगा कि जितनी लंबी कतार उतने बड़े भगवान

तो क्या शहरों में भगवान जल्दी प्रशन्न होते  हैं ? या गांव के मंदिरो में?

 

आज हम आपको शहरों के शोर से दूर एक गांव में लिए चलते हैं और बताते हैं कि गांव के भोले-भाले ग्रामीण अपने दैनिक खेत खलियान के काम के साथ ईश्वर की लिए भक्ति के लिए कैसे समय निकाल लेते हैं । उनकी भक्ति को ईश्वर कितनी सरलता  से सुनते हैं।

चलिए आपको टिहरी जिले के द्वारी ग्राम सभा के अंतर्गत देव लंगी के गौलेशवर महादेव के दर्शन कराते हैं साथ ही यह भी बताएंगे कि गौलेशवर महादेव मे मंदिर कब स्थापित हुआ और इसकी धार्मिक महत्ता क्या है

शिव मंदिर में जल चढ़ाना हो तो सबसे उत्तम गंगाजल ही माना जाता है ।  यही वजह है कि लोग दूर-दूर से गंगाजल लेकर शिवालय में चढ़ाते हैं आज हम आपको पिलखेशवर  महादेव के भी  दर्शन करवाएंगे जो टिहरी जिले के घनसाली तहसील के अंतर्गत पिलखी  में स्थापित है । टिहरी  झील के निर्माण के बाद पिलखेशवर  महादेव का मंदिर भी डूब क्षेत्र में आ गया है और जलस्तर बढ़ने के बाद इसे नए मंदिर में स्थापित कर लिया गया है जबकि पानी का स्तर कम होने पर लोग मूल शिवलिंग पर पूजा अर्चना करते हैं और जल चढ़ाते हैं।

जब टिहरी  झील में पर्याप्त पानी होता है तो मूल मंदिर भी इसमें डूब जाता है लेकिन इन दिनों पानी का जलस्तर कम है और शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए हमें काफी मेहनत कर ढलान उतरते हुए पानी के लिए जाना पड़ेगा । आसपास के डूबे हुए खेतों पर और पेड़ों पर लगे हुए निशान बता रहे हैं कि जब जलस्तर बढ़ता है तो पानी किस ऊंचाई तक जमीन को छूता होगा।

मंदिरों में प्रसाद चढ़ाने के लिए कितनी आतुरता भक्तों में दिखाई देती है उतनी ही आतुरता प्रसाद चट करने के लिए बंदरों में दिखाई दे रही है। कई बार ये भक्तो के हाथो से प्रदास की थैली भी झपट लेते है ।

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