भारतवर्ष के तालाबों में कभी कमल खिलते थे यह कोई कल्पना लोक की बात नहीं है… जलकुंभी जैसी दुष्ट जलीय खरपतवार के भारत आगमन से पूर्व यहां तालाबों में कमल दल ही फलते फूलते थे… आज इसके कारण मखाने व कमल ककड़ी का उत्पादन प्रभावित हो रहा है पूर्वी भारत में… उत्तर भारत वालों को तो कोई चिंता नहीं है वह इसे भारत भूमि के लिए प्रकृति की स्वाभाविक सौगात समझता है|
अंकित तिवारी
जलकुंभी या समुंदर #सोख #ब्राजील , अमेजन के जंगलों में पाए जाने वाला दक्षिण अमेरिकी पुष्पीय जलीय पौधा है जिसे 18वीं शताब्दी में भारत लाया गया… भारत की गर्म व नम जलवायु इसे काफी रास आई कोलकाता से यह फला फूला.. तेजी से फैलने वाली यह एक जलीय खरपतवार है… इसका एक पौधा ही किसी तालाब में 1 वर्ष में 1 एकड़ में फैल जाता है एक पौधे से 5000 बीज निकलते हैं यह तालाब या किसी जल स्रोत की मिट्टी में दब जाते हैं 30 वर्षों तक उनमें अंकुरण क्षमता बनी रहती है अनुकूल मौसम पाकर फिर यह तेजी से अपनी वृद्धि करते हैं.. 10 से 12 दिनों में जलकुंभी का पौधा अपनी संख्या दुगनी कर लेता है… तालाब की #oxygen को ग्रहण कर 50 से 60 फ़ीसदी ऑक्सीजन की कमी कर देता है.. मछलियां जलीय जीव तेजी से मरते हैं.. जीवो से पहले यह तालाब का दम घोट देता है.. तालाब के पानी का तेजी से वाष्पीकरण भी होता है इसके कारण.. जल स्तर घटता है… जलकुंभी ने देश की लगभग सभी छोटे जल स्रोतों को अपनी चपेट में ले लिया है.. यही कारण है इसे बंगाल का आतंक( Terror of Bengal )भी कहते हैं|
#देश में जलकुंभी जैसी जलीय खरपतवार से निपटने के लिए कभी कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है कुछ जगह मजदूरों से मैनुअली सफाई कराई जाती है लेकिन जिसका कोई दूरगामी सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता साथ ही यह प्रक्रिया काफी खर्चीली भी है.. रासायनिक खरपतवार नाशक केमिकल इसमें प्रभावी है लेकिन उनके पर्यावरण पर दुष्प्रभाव सार्वजनिक है.. कुछ कीट है जिनमें गेहूं खाने वाली सुरेरी शामिल है जो जलकुंभी के खोखले हवादार तने अंकुर को खाते हैं इसकी मात्रा को प्राकृतिक तौर पर नियंत्रित करते हैं यह एक अच्छा विकल्प है फिलहाल इस पर कार्य करने की जरूरत है…!