उत्तरकाशी
देव भूमि उत्तराखंड थौलों और मेलो की अनूठी परम्पराओ का प्रदेश है | यहा इन्सानो ने देवताओ के साथ मानवीय रिश्ते कायम किए है | थौलों मेलो मे अक्सर इसकी छटा देखने को मिल जाती है | गंगोत्री धाम के शीतकालीन प्रवास मुखवा मे 20 – 21 गते को नाग देवता के पुजा हरदुधु मेले के रूप मे मनाया जाता है | नाग देवता को दूध चढ़ाने के बाद सीजन का प्रथम ब्रहमकमल देव पुष्प समेश्वर देवता को अर्पित किया जाता है| मान्यता है कि नागदेवता को ब्रहमकमल पुष्प अर्पण करने के बाद ही मानव इसे अपने घर ले जा सकता है | मेले के सम्पूर्ण होने पर इस पुष्प को प्रसाद के रूप मे बांटा जाता है |
तीर्थ पुरोहित सुधन्सू सेमवाल ने बताया कि पवित्र श्रावण के महीने मे 20 गाते को रात के समय नाग देवता को सभी ग्रामीणो द्वारा दूध चढ़ाया जाता है | 21 गते श्रावण को दिन के समय समेश्वर देवता का मेला लगता है तांदी और रांसों समूहिक नृत्य का आयोजन किया जाता है | इस मौके पर खासकर सभी ब्याही बेटियो को मायके बुलाया जाता है | सबसे पहले देव पुष्प ब्रहमकमल देवता को चढ़ाया जाता है उसके बाद सभी को प्रसाद स्वरूप वितरण किया जाता है इस पुष्प को घर मे रखने से सुख शांति और खुशाली बनी रहती है | इस मेले से पहले कोई भी इंसान ब्रहमकमल के पुष्प का तोड़कर नहीं ले सकता है – ऐसी मान्यता है |