करन माहरा के कंधों पर राहुल गांधी का हाथ – प्रीतम का प्रेम किधर ?

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क्या उत्तराखंड काँग्रेस मे प्रीतम का प्रेम कुछ नया रंग लेने जा रहा है ?

हिमांचल की जीत के बाद जहां बीजेपी टूट के डर कर दिल्ली मे ताबड़तोड़ बैठके  कर रही है  वहीं काँग्रेसी  नेता उत्तराखंड मे चुनाव हारने  के 9  महीने बाद खुद ही एक दूसरे पर ही छींटा कसी कर रहे है ।  बीजेपी हिमाचल की हार के बाद उत्तराखंड मे डरी हुई है वही कॉंग्रेस उत्तराखंड की हार पर ही चुट्कले  गढ़ रही है ।

तो क्या कॉंग्रेस विधायक का नहीं बल्कि मुख्यमंत्री का चुनाव लड़ रही थी ? कॉंग्रेस के नेताओ के बयान से तो यही लगता है । तो क्या यही वजहा है कि प्रीतम ने राहुल गांधी कि भारत जोड़ो यात्रा  से दूरी बनाए रखी ?

करण मेहरा के कंधे पर राहुल का यह हाथ उत्तराखंड की राजनीति के  लिहाज से कितना महत्वपूर्ण है?  कितना अहम है और भविष्य की राजनीति में इसके क्या मायने होंगे,  यह तो भविष्य बताएगा लेकिन वर्तमान में सियासी तूफान जरूर लेकर आ गया है ।

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में उत्तराखंड काँग्रेस से करण माहरा,   यशपाल आर्य कुछ और अन्य नेता भी मौजूद रहे । इस दौरान अब जो  सियासत हो रही है उस सियासत के सहारे कई सवाल आने लगे हैं , यशपाल आर्य सीनियर नेता है,  नेता प्रतिपक्ष भी हैं वह भी राहुल की यात्रा में शामिल हुए।  युवा नेता उप नेता विपक्ष भवन कापड़ी  भी सवाई माधोपुर में ही राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा बने,  लेकिन इस यात्रा के बाद उत्तराखंड मे काँग्रेस की  राजनीतिक कितनी बदली है इसको लेकर भी अब  तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं प्रीतम सिंह पूर्व पीसीसी चीफ़ , जो इस बार भी विधायक हैं वह भी राजस्थान के पुष्कर जरूर गए थे लेकिन वह राहुल के साथ भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा नहीं बने इस पर  अब सवाल उठ रहे हैं ।

हरीश रावत पहले ही दो मर्तबा यात्रा में शामिल हो चुके हैं वह दो अलग जगह पर राहुल के साथ यात्रा का हिस्सा बने हैं ।

भारत जोड़ो यात्रा का कांग्रेस को देश मे और उत्तराखंड में  कितना फायदा मिलेगा , यह तो अभी कहा नहीं जा सकता लेकिन हिमाचल में कांग्रेस की जीत के  बाद उत्तराखंड की कांग्रेस में घमासान जरूर मच गया  है और हार के कारणों पर एक बार फिर से आपसी टकराव की स्थिति है,  और एक बार फिर से  एक दुरसे पर बयानबाजी की नौबत आ चुकी है

उत्तराखंड मे चुनाव हारने  के 9 महीने बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद तब हुआ जब प्रीतम ने कहा था कि उत्तराखंड में विधायक का नहीं बल्कि मुख्यमंत्री का चुनाव लड़ा जा रहा था,  और इन सवालों पर अब हरीश रावत पलटवार भी कर रहे हैं

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लेकिन जब यह वार पलटवार की राजनीति चल रही है तब राहुल राहुल गांधी ने करण माहरा  के कंधे पर भरोसे का जो हाथ रखा है , तब करण माहरा को ये भी साबित करना होगा कि कांग्रेस में जो बिखरे हुए नेता हैं उनको एक मंच पर लाए  ताकि संगठन में एकता हो,

प्रीतम सिंह ने दिल्ली में खड़के  से जरूर मुलाकात की उनके साथ कुछ विधायक भी रहे और  कुछ कुछ दिन पहले दिग्विजय सिंह से भी मुलाक़ात की  लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब वे अजमेर तक पहुंच गए थे और पुष्कर के दर्शन भी कर लिए तो फिर वह राहुल गांधी के साथ यात्रा में शामिल क्यों नहीं हुए ? इसे लेकर भी कई सवाल उठ रहे है।

अब  सवालों का जवाब उत्तराखंड कांग्रेस कैसे देगी यह बड़ा सवाल है

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