हिंदुस्तान के अंतिम गाँव से देश की अंतिम पहाड़ी के दर्शन

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भारत चीन सीमा पर बसे अंतिम गाँव जाडुंग से भारत की अंतिम पहाड़ी को देखना अपने आप मे कौतूहल भरा है।

 

https://youtu.be/c5DByzQRl2k

 

1962 में चीन से युद्ध के बाद बॉर्डर पास बसे निलोंग और जाडुंग गांव को हरसिल, बगोरी और डुंडा में विस्थापित कर दिया गया था। किंतु आज भी जाट -भोटिया समुदाय के ये ग्रामीण अपने लाल देवता और कुल देवी की पूजा के लिए वर्ष में एक बार अपने पौराणिक गाँव मे जरूर आते है।  चीन युद्ध के बाद तिब्बत से भारत का व्यापार भले ही अब बंद हो गया हो किन्तु अभी तक भी इसके निशान बाकी है। उत्तरकाशी मुख्यालय में स्थित बड़ा हाट का नाम इसी तिब्बत व्यापार से जोड़ा जाता है। उस जमाने मे उत्तरकाशी के बड़ा हाट में तिब्बत के व्यापारी हाट लगाते थे और रुपये से लेनदेन की बजाय वस्तुओं का आदान -प्रदान होता था। सीमा पर इस गाँव की वीरानी को बीच- बीच मे सीमा प्रहरियों के कदम ताल ही तोड़ते है। सेना और आयी टीबीपी के अलावा किसी को यहाँ रहने की इजाजत नही है। किंतु राज्य सरकार द्वारा निलोंग घाटी के लिए सीमित संख्या में पर्यटको की आवाजाही सुरु कर दी गयी है किन्तु अभी भी इसके लिए जिला प्रशासन के साथ वन महकमे की इजाजत भी जरूर है। पर्यटको की सुविधा के लिए सिंगल विंडो सिस्टम सुरु किया गया है। बाहर से आने वाले ऑनलाइन भी पंजीकरण कर सकते है किंतु पूरे दस्तावेज के साथ एक बार मौके पर आना जरूरी होता है।
एडवेंचर के शौकीन खासकर युवाओ में निलोंग घाटी को।लेकर जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है।
1962 में चीन से युद्ध के बाद बॉर्डर पास बसे निलोंग और जाडुंग गांव को हरसिल, बगोरी और डुंडा में विस्थापित कर दिया गया था। किंतु आज भी जाट -भोटिया समुदाय के ये ग्रामीण अपने लाल देवता और कुल देवी की पूजा के लिए वर्ष में एक बार अपने पौराणिक गाँव मे जरूर आते है।  चीन युद्ध के बाद तिब्बत से भारत का व्यापार भले ही अब बंद हो गया हो किन्तु अभी तक भी इसके निशान बाकी है। उत्तरकाशी मुख्यालय में स्थित बड़ा हाट का नाम इसी तिब्बत व्यापार से जोड़ा जाता है। उस जमाने मे उत्तरकाशी के बड़ा हाट में तिब्बत के व्यापारी हाट लगाते थे और रुपये से लेनदेन की बजाय वस्तुओं का आदान -प्रदान होता था। सीमा पर इस गाँव की वीरानी को बीच- बीच मे सीमा प्रहरियों के कदम ताल ही तोड़ते है। सेना और आयी टीबीपी के अलावा किसी को यहाँ रहने की इजाजत नही है। किंतु राज्य सरकार द्वारा निलोंग घाटी के लिए सीमित संख्या में पर्यटको की आवाजाही सुरु कर दी गयी है किन्तु अभी भी इसके लिए जिला प्रशासन के साथ वन महकमे की इजाजत भी जरूर है। पर्यटको की सुविधा के लिए सिंगल विंडो सिस्टम सुरु किया गया है। बाहर से आने वाले ऑनलाइन भी पंजीकरण कर सकते है किंतु पूरे दस्तावेज के साथ एक बार मौके पर आना जरूरी होता है।
एडवेंचर के शौकीन खासकर युवाओ में निलोंग घाटी को।लेकर जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है
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