पाँच साल विधायक या सांसद रहने पर नेता पेंशन का हकदार हो गए और 30 साल के सेवा के बाद भी कर्मचारी इसे बाहर ?
ओल्ड पेंशन स्कीम
क्या 2024 के चुनावी महासमर में देश भर में यह मुद्दा एक साथ अपना रोल प्ले करेगा?
सवाल बड़ा है ?
लाखों-करोड़ों परिवारों से सीधा जुड़ा हुआ है , उनके पेट से जुड़ा है। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के पटल पर जब जयराम ठाकुर यह कह रहे थे कि जिन जिन सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन चाहिए उनके लिए मेरी सलाह है कि वह नौकरी छोड़े, पॉलिटिक्स ज्वाइन करें , चुनाव लड़े – चुनाव जीत के आए और पेंशन के हकदार हो जाएं।
तब शायद जयराम ठाकुर कोई अंदाज नहीं रहा होगा कि उनकी यह तल्ख टिप्पणी उनकी जन्मपत्री मेंराज योग का अंक हटा सकती है , और वही हुआ हिमाचल के चुनाव में यही सबसे बड़ा मुद्दा रहा, सबसे निर्णायक बिंदु रहा , वह था ओपीएस यानी ओल्ड पेंशन स्कीम ।
इतना बड़ा आंदोलन हिमाचल में चला सारे कर्मचारी और उनके परिवारों ने इसके लिए अलग जगाई और उनके निशाने पर आए जयराम ठाकुर ।
कांग्रेस ने इस अवसर को आत्मसात किया और प्रियंका गांधी ने घोषणा की हमारी सरकार बनवाए और ओपीएस पाएँ । कांग्रेस के पास कहने को यह भी था कि हमने छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इसको किया है तो नतीजा आया कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार हिमाचल में वापस आते-आते रह गई। पेंशन के लिए जो आंदोलन लाखों लाख कर्मचारी देश भर में चला रहे हैं , उनके लिए यह घटनाक्रम एक नई ऊर्जा देने वाला है और सारे राजनीतिक पार्टियों के लिए एक नए संकट का अवसर है। ओपीएस पश्चिम बंगाल, राजस्थान छत्तीसगढ़ और हिमाचल राज्य में लागू है और जहां लागू नहीं है वहां एक बड़ा सियासी मुद्दा बन चुका है, यहाँ तक जितने राज्यों में चुनाव है वहां के इस सवाल से नजरें चुराना राजनैतिक दलो के लिए संभव होगा ?
क्या ओपीएस के मुद्दे के साथ खड़ा होना पार्टियो को चुनाव में जीत की सुविधाजनक सीढ़ी मानी जा सकती है और इन सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या 2024 के चुनावी महासमर में देश भर में यह मुद्दा एक साथ अपना रोल प्ले करेगा ? सवाल बड़ा है और लाखों-करोड़ों परिवारों से सीधा जुड़ा हुआ, उनके पेट से जुड़ा है । इसलिए इस मुद्दे में धार दिखाई देती है ।